नित्य संदेश।
मां को देते गालियां ?
अचरज सारा देश करे
फिर भी बजती
तालियां ?
मां को..........
१.
वे जन्मे नहीं देश में
घूमें छद्म से वेश में,
उनकी करतूतों से भले
वातावरण हो क्लेष में।
झुकी जा रहीं शर्म से
संस्कृति की डालियां।
मां को............
२.
जैसे तैसे पाना सत्ता
उल्टा सीधा फैंकें पत्ता,
आंख मींचकर चल
पड़ता है
इनके पीछे सारा जत्था
भले बजाएं ये जोरों से
भूखे नंगे थालियां ।
मां को............
३.
दुश्मन इनको लगता
प्यारा
खुला हुआ सारा
गलियारा,
देश अगर कुछ अच्छा
कर दे
इनका चढ़ जाता है
पारा ।
इनको ढकने को कम
पडती
लोहे की सब जालियां।
मां को............
४.
सोच समझ निर्णय दे
जनता
वरना भुगतेगा ये देश,
आने वाले भविष्य में
क्या
रह जाएगा शेष ?
भरी पड़ी हैं गंदगी से
राजनीति की नालियां।
मां को.........
५.
मां न होती होता कौन?
इस पर सारे होवें मौन ।
हल पाने एक दूजे
को ही
सभी लगाते देखो फोन
कौन बनता जीजा
साला ?
कहां से आती
सालियां ?
मां को.........
प्रदीप नवीन
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