-फर्जी दस्तावेज़ों और हेरा-फेरी का आरोप, लोक आयुक्त उप्र में शिकायत
नित्य संदेश ब्यूरो
सरधना। नगर पालिका परिषद में 15वें वित्त आयोग की निधि से कराए गए तथाकथित विकास कार्यों में भारी अनियमितताओं, जालसाजी और भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ है। यह मामला फिलहाल लोक आयुक्त उत्तर प्रदेश के समक्ष विचाराधीन है, जहां प्रारंभिक जांच में चेयरपर्सन सबीला अंसारी, तत्कालीन अधिशासी अधिकारी शशि प्रभा चौधरी, प्रधान लिपिक विपिन शर्मा और जूनियर इंजीनियर की संलिप्तता सामने आई है।
शिकायत में कहा गया है कि चेयरपर्सन व अधिशासी अधिकारी ने प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मिलकर नवाबगड़ी गांव व श्याम वाटिका, सरधना देहात जैसे गैर-अधिसूचित क्षेत्रों में नाले का निर्माण और स्ट्रीट लाइट लगवाने जैसे कार्य कराए। इन कार्यों के लिए लगभग 56,25,115 की धनराशि का भुगतान अनधिकृत रूप से कर दिया गया, जबकि यह स्पष्ट रूप से शहरी सीमा से बाहर का कार्यक्षेत्र था। लोक आयुक्त द्वारा पूछे गए स्पष्टीकरण में अधिशासी अधिकारी द्वारा नवाबगड़ी गांव में नाले के निर्माण के समर्थन में एक पत्र प्रस्तुत किया गया, जो शगुफ्ता अंसारी, वर्तमान सभासद के नाम से था। लेकिन जब नाला निर्माण हुआ, उस समय उस वार्ड के निर्वाचित सभासद यूसुफ अंसारी थे। यानी यह पत्र पूरी तरह से फर्जी, और भ्रामक था। इस फर्जी पत्र पर चेयरपर्सन ने हस्ताक्षर कर अधिशासी अधिकारी, प्रधान लिपिक और जेई को आदेशित किया, जिससे सभी अधिकारी इस षड्यंत्र में भागीदार साबित होते हैं।
अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में
यह भी गंभीर तथ्य है कि 15वें वित्त आयोग की धनराशि का उपयोग करते समय जिलाधिकारी को भेजे गए अनुमोदन पत्र में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि जिन क्षेत्रों में कार्य कराया गया वह ग्राम देहात क्षेत्र हैं। अर्थात जानबूझकर तथ्यों को छुपाकर और शहरी क्षेत्र का विकास कार्य बताकर गलत जानकारी देकर अनुमोदन प्राप्त किया गया, जो स्पष्ट रूप से एक धोखाधड़ी और राजकोषीय अनियमितता है। इस पूरे कृत्य में निम्न अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों की भूमिका संदेह के घेरे में है।
सभासदों ने की एफआईआर दर्ज कराने की मांग
इस पूरे प्रकरण को लेकर सभासद कविता और पूर्व सभासद निर्दोष कुमार द्वारा मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायत दर्ज की गई, लोक आयुक्त के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया गया, संबंधित थाने में एफआईआर दर्ज कराने की मांग की गई, नगर पालिका अधिनियम की धारा 48 के अंतर्गत आरोपियों को पदमुक्त करने और कार्यों की सीबीआई/एसआईटी जांच कराने की मांग भी की गई है।
निजी स्वार्थ के लिए किया गया गबन
यह प्रकरण न केवल एक वित्तीय गड़बड़ी है, बल्कि यह दिखाता है कि कैसे कुछ जिम्मेदार पदों पर बैठे व्यक्ति विकास निधियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। जनता की गाढ़ी कमाई का पैसा, जो नगर विकास के लिए आता है, वह ग्रामीण क्षेत्रों में अवैध रूप से कार्य कराकर निजी स्वार्थ के लिए गबन किया जा रहा है।
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