नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। गढ़ रोड स्थित राधा गोविन्द मंडप पर श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस हरिद्वार से आए महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती महाराज ने भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए कहा कि भागवत जी के कुछ सिद्धांतों के जीवन में बहुत गहराई से अपना लेना चाहिए, हमें दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि भगवान हैं। ईश्वर महान हैं। हमने भगवान को नहीं देखा, फिर भी किसी के बताने पर हम विश्वास करते हैं, मानते हैं कि यहां भगवान है।
श्री भागवत जी का महामंत्र है "कृष्णाय वासुदेवाय परमे परमात्मने" प्रणत क्लेश नशाय गो विदाए नमो नमः। भागवत जी के इस मंत्र का 40 दिन तक जाप करेंगे तो फल मिलेगा। कृष्ण का लौकिक दृष्टि से प्रथम विवाह रुक्मिणी के साथ हुआ। भगवान श्री कृष्ण ने भोमासुर का वध कर 16100 कन्याओं को भोमासुर के अत्याचार से मुक्त कराया। द्वारका पहुंचे नारद का भगवान ने स्वागत किया। भगवान ने बाणासुर का वध किया। राजसूय यज्ञ का वर्णन करते हुए बताया। सब लोग मिलकर के इंद्रप्रस्थ आए धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के मूल कथा है। तब भीम ने जरासंध को उठाकर पटका उसके पांव पर अपना पांव रखा और दो फाड़ कर दिया और दोनों पांव को दोनों ऐसे का जरासंध का वध हो गया। जरासंध बेटे को राजगद्दी सौंप दी और भगवान ने कहा, तुम राजसूय यज्ञ में आना और वहां से जाकर के जो कारागार में बड़े-बड़े राजा लोग बंद थे, उनको सबको मुक्त किया। गुरु जी कहते हैं कि भगवान को भोग लगाना है, स्वयं बनाकर भोग लगाओ भगवान प्रसन्न होंगे। आगे के प्रसंग में सुदामा जी की कथा का वर्णन हुआ। कथा में मनोज कुमार, बबीता अग्रवाल, गोविन्द अग्रवाल, वृंदा अग्रवाल, आरके प्रसाद, विपुल सिंघल, मयंक अग्रवाल एवं भक्तजन उपस्थित रहे।
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