Breaking

Your Ads Here

Wednesday, May 7, 2025

भारत को दुर्भाग्यवश "थैलेसीमिया की राजधानी" कहा जा रहा

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। हर वर्ष 8 मई को मनाया जाने वाला विश्व थैलेसीमिया दिवस थैलेसीमिया से जूझ रहे लोगों और उनके परिवारों की चुनौतियों की याद दिलाता है। इस वर्ष की थीम भारत में थैलेसीमिया की भयावह स्थिति को उजागर करती है। भारत में थैलेसीमिया के सबसे अधिक रोगी हैं, जिससे भारत को दुर्भाग्यवश "थैलेसीमिया की राजधानी" कहा जा रहा है।

भारत में थैलेसीमिया का बोझ
थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता, जिससे गंभीर एनीमिया होता है। भारत में 1 लाख से अधिक थैलेसीमिया मेजर रोगी* हैं और हर वर्ष लगभग 10,000 नए बच्चे इस बीमारी के साथ जन्म लेते हैं। अनुमानतः 4 करोड़ भारतीय थैलेसीमिया वाहक हैं, जिनमें से अधिकांश को इस बात की जानकारी नहीं होती।

विवाह पूर्व परीक्षण की भूमिका "मेडिकल कुंडली"
थैलेसीमिया को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है विवाह पूर्व रक्त जांच, जिसे अब “मेडिकल कुंडली” कहा जा रहा है। जैसे वैवाहिक कुंडली मिलान एक परंपरा है, वैसे ही विवाह से पहले चिकित्सा जांच भी आवश्यक होनी चाहिए। एक साधारण रक्त जांच से यह पता लगाया जा सकता है कि दोनों विवाह करने वाले व्यक्ति थैलेसीमिया वाहक हैं या नहीं। यदि दोनों वाहक हैं, तो हर गर्भधारण में 25% संभावना होती है कि बच्चा थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित होगा। इस बारे में जागरूकता और सतर्कता से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों के जन्म को रोका जा सकता है।

 एक रोग जो पूरे परिवार को प्रभावित करता है
थैलेसीमिया सिर्फ एक शारीरिक रोग नहीं है, यह एक आजीवन भावनात्मक, आर्थिक और मानसिक बोझ बन जाता है। मरीजों को नियमित रक्त चढ़ाने, दवाओं, अस्पताल जाने और संभावित जटिलताओं से जूझना पड़ता है। इलाज की लागत बहुत अधिक होती है, जिससे मध्यम और निम्न आय वर्ग के परिवार आर्थिक तंगी में आ सकते हैं। माता-पिता और भाई-बहनों पर इसका मानसिक प्रभाव भी अत्यधिक होता है।

 अब समय है कार्रवाई का
जागरूकता, समय पर जांच और सहयोगी नीतियों से भारत इस संकट को पलट सकता है। विश्व थैलेसीमिया दिवस 2025 एक आह्वान है कि सरकार, स्वास्थ्यकर्मी, शिक्षक और आम नागरिक मिलकर इस बीमारी के खिलाफ लड़ें। मेडिकल कुंडली को विवाह से पहले की अनिवार्य प्रक्रिया बनाना थैलेसीमिया उन्मूलन की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है।

इस दिवस को एक संदेश बनने दें:
रोकथाम संभव है। ज़िम्मेदारी साझा है। और एक थैलेसीमिया मुक्त भारत हमारा लक्ष्य है।

प्रस्तुति 
प्रोफेसर डॉ. अनिल नौसरान
(पैथोलॉजिस्ट)

No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here