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Wednesday, March 12, 2025

शहर काजी सियासत में या सियासत में शहर काजी की कुर्सी!

 



मेरठ का शहर काजी कौन? पशोपेश में मुस्लिम समुदाय

नित्य संदेश। दिवंगत शहर काजी प्रो. जैनुल साजिद्दीन के बाद इस कुर्सी को लेकर अजीब स्थिति बन गई हैमेरठ का मुसलमान जानना चाहता है कि अब शहर काजी कौन हैआलिम दो गुटों में बंट गए हैं। जैनुल साजिद्दीन के पुत्र प्रोफेसर डा. सालेकिन को पूर्व मंत्री एवं सपा विधायक शाहिद मंजूर की मौजूदगी में शहर काजी नियुक्त कर दिया गयाजबकि मंगलवार को शहर कारी शफीकुर्रहमान को भी एक बसपा नेता की मौजूदगी में शहर काजी घोषित कर दिया गया।

आसान शब्दों में ये समझ लीजिए कि शहर काजी की कुर्सी राजनेताओं के बीच फंस गई हैं। एक तरफ सपा और दूसरी तरफ बसपा। अब इसमें किसका गुट भारी पड़ेगा, ये देखना दिलचस्प होगा। शहर के लोग भी जानना चाहते हैं, दोनों में किसकी कुर्सी महफूज रहती है, या दोनों ही शहर काजी बने रहेंगे। अगर ऐसा हुआ तो ईद उल फितर और ईद उल अजहा की नमाज कौन अदा कराएगा? अगर दोनों जिद पर अड़े रहे तो मसले का हल नहीं निकल पाएगा, शहर के एक बड़े आलिम का कहना है कि ईद तक मसला सुलझा लिया जाएगा। हालांकि, उन्होंने दबे सुर में कहा कि शहर काजी प्रोफेसर डा. सालेकि ही बने रहेंगे।

40 साल से कारी शफीकुर्रहमान ही शाही ईदगाह में ईद की दोनों नमाजों में अपना संबोधन करते रहे हैं, जबकि नमाज शहर काजी स्व. प्रोफेसर जैनुस साजिद्दीन सिद्दीकी पढ़ाया करते थें। इस संबंध में आज प्रोफेसर डा. सालेकि से मुलाकात हुई, तब उन्होंने कहा, मेरी परवरिश दीनी माहौल में हुई है, और मुझे नमाज अदा कराना आता है। हालांकि, 14 मार्च में जुमा की नमाज शाही मस्जिद में कारी सलमान अदा कराएंगे। जब इस संबंध में पूछा गया, तब बताया गया कि कारी सलमान पूर्व से ही शाही मस्जिद में नमाज अदा कराते आ रहे हैं, लेकिन शाही ईदगाह में नमाज प्रोफेसर डा. सालेकि ही पढ़ाएंगे।

तर्क-वितर्क और विवाद में शहर काजी की कुर्सी उलझ गई है। जिसे सुलझाने के लिए आज फिर से उलमा और जिम्मेदारों की पंचायत हुई, जिसमें फिर से प्रोफेसर डा. सालेकि को पगड़ी पहना दी गई। भारी मजमे में अधिकतर सपाई ही दिखाई दे रहे थे। जैसे मंगलवार को कारी शफीक की सभा में बसपाई नजर आ रहे थे। सूत्रों की माने तो पर्दे के पीछे सियासत से जुड़े सफेदपोश अपने-अपने निशाने साध रहे हैं।

शहर काजी कौन? इस सवाल का जवाब जानने जब मैं कारी शफीकुर्रहमान के पास पहुंचा तो वहां बसपा से जुड़े एक बड़े नेता बैठे हुए नजर आए। आज भी दिनभर सपा से जुड़े लोग प्रोफेसर डा. सालेकि को फूलों की माला पहनाते दिखे। किसका पलड़ा भारी पड़ेगा, ये आने वाला वक्त बताएगा? लेकिन इतना तय है कि प्रोफेसर डा. सालेकि का वजूद भारी पड़ रहा है, क्योंकि उलमाओं का बड़ा धड़ उनके साथ खड़ा है।

अब सबसे बड़ा सवाल ये है, शहर काजी की कुर्सी को लेकर सियासत है, या सियासत शहर काजी को लेकर है। क्योंकि जिस तरह सफेदपोश इस मामले में अपनी रूचि दिखा रहे हैं, प्रश्न बन रहे हैं। आने वाले समय में शहर की जनता किसके साथ होगी, इसका अभी इंतजार करना होगा…

आपकी क्या राय है, जरूर बताए…


लियाकत मंसूरी

संपादक, नित्य संदेश

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