चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी के उर्दू विभाग में नेशनल सेमिनार का आयोजन
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। आबिद साहब ने जिस तरह मर्सिया गोई पर काम किया है, इस काम के मामले में उन्हें कोलंबस कहा जा सकता है। शोकगीत ने ग़ज़ल की वोकैबुलरी नहीं ली, लेकिन आज ग़ज़ल शोकगीत की वोकैबुलरी के बिना पूरी नहीं होती। शोकगीत ने रुबाई को पाला है। ये शब्द मशहूर शायर और आलोचक प्रो. अब्बास रजा नैयर के थे, जो चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी, मेरठ के उर्दू विभाग और अंजुमन फरोग-ए-मर्सिया, मेरठ के मिलकर आयोजित एक दिन के नेशनल सेमिनार 'प्रो. आबिद हुसैन हैदरी: फ़िक्र ओ फन' में मुख्य अतिथि के तौर पर अपना वक्तव्य दे रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा क्या है जो मर्सिया में कहा नहीं जा सकता या कहा नहीं गया है? आबिद साहब ने मर्सिया के शिल्प के मुमकिन पहलुओं को खोजा है। मर्सिया की कला की आलोचना आबिद साहब के बिना पूरी नहीं हो सकती। मेरठ स्कूल की सोच अलग है। यहां की सोच अलग है। मेरठ स्कूल को मेरठ स्कूल मानना हमारी नैतिक ड्यूटी है।
इससे पहले प्रोग्राम की शुरुआत बीए ऑनर्स की स्टूडेंट फकीहा की तिलावत से हुई। नात नुजहत अख्तर ने पेश की। इसके बाद मेहमानों का फूलों से स्वागत किया गया। इस मौके पर मशहूर शायरा दानिश ग़ज़ल ने ग़ज़ल पेश कर माहौल खुशनुमा बना दिया। प्रोग्राम की अध्यक्षता प्रो.असलम जमशेदपुरी ने की।
प्रोफेसर अब्बास रजा नैयर [अध्यक्ष, उर्दू विभाग, लखनऊ यूनिवर्सिटी] ने मुख्य वक्ता के, मौलाना सैयद अतहर काज़मी [मनसबिया अरबी कॉलेज, मेरठ] ने मुख्य अतिथि के रूप में हिस्सा लिया। इस दौरान प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदर की किताब “दबिस्तान-ए-मेरठ की मर्सिया गोई” का विमोचन प्रोफेसर फारूक बख्शी [पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग, मानू, हैदराबाद] और दूसरे मेहमानों ने किया। स्वागत भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने, संचालन डॉ. शादाब अलीम और आभार डॉ अलका वशिष्ठ ने किया।
तकनीकी सत्र की अध्यक्षीय मंडल में प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी, मौलाना अतहर काज़मी, मौलाना मुहम्मद अली तकवी, अफ़ाक अहमद खान, बद्र महमूद मौजूद थे और शोध वक्ताओं में डॉ. फरहत खातून ने “एक बहुमुखी प्रतिभा: आबिद हुसैन हैदरी” और डॉ. नवेद खान ने “प्रोफ़ेसर आबिद हुसैन हैदरी का गद्य”। डॉ. नईम सिद्दीकी ने “प्रोफ़ेसर आबिद हुसैन हैदरी अपने शोकगीतों के संदर्भ में” पर सबसे अच्छे निबंध पेश किए और अरीबा सरफ़राज़ ने “निजी शोकगीत और आबिद हुसैन हैदरी की आलोचना” पर सबसे अच्छे शोध प्रपत्र पेश किए।
इस मौके पर अपने विचार ज़ाहिर करते हुए प्रोफ़ेसर फ़ारूक़ बख्शी ने कहा कि दिल्ली के उपनगरों में होने के बावजूद मेरठ को कुछ नुकसान भी उठाने पड़े। जैसे, मेरठ की बोली-ठोली, जो शुद्ध ख़ैरियत की बुनियाद पर खड़ी है और जिसका अपना सेंटर और रंग-रूप है, अगर बदल जाती तो स्कूल का दर्जा पा सकती थी। मुझे खुशी है कि प्रोफ़ेसर असलम जमशेदपुरी मेरठ को दबिस्तान का दर्जा दिलाने के लिए बहुत कोशिश कर रहे हैं। वह लगभग हर साल ऐसे इवेंट करते रहते हैं जो इस कॉन्सेप्ट को मज़बूत करते हैं। मेरठ स्कूल का शोकगीत लिखना इसी सीरीज़ की एक अहम कड़ी है। प्रोफ़ेसर आबिद हुसैन ने यह किताब लिखी है और मेरठ में उर्दू शोकगीत के इतिहास को इकट्ठा किया है। मुझे यह किताब पेश करते हुए बहुत खुशी हुई। इसके विमोचन के मौके पर मैं आपको तहे दिल से बधाई देता हूं।
किताब के लेखक प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी ने कहा कि उर्दू साहित्य में दिल्ली और लखनऊ स्कूलों की शोहरत ने पश्चिमी और पूर्वी उत्तर प्रदेश के साहित्यिक केंद्रों को पीछे छोड़ दिया और उर्दू साहित्य की छोटे शहरों और साहित्यिक बस्तियों की साहित्यिक राजधानी वह अहमियत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन 21वीं सदी में मेरठ और आजमगढ़ जैसे साहित्यिक केंद्रों पर खास ध्यान दिया गया और खासकर मेरठ में प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी की गतिविधियों ने लेखकों का ध्यान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस अहम केंद्र मेरठ की ओर खींचा। मेरठ स्कूल का शोकगीत असल में CCS यूनिवर्सिटी की साहित्यिक गतिविधियों का एक हिस्सा है जिसने एक लेख से किताब का रूप ले लिया है। यह किताब मेरठ के साहित्यिक स्कूल की पहचान का ज़रिया बनेगी।
अपने विचार व्यक्त करते हुए मौलाना अतहर काज़मी ने कहा कि आबिद साहब ने जो काम किया है, वह तो बस शुरुआत है, अभी और भी लोग हैं। आबिद साहब ने इस किताब में जिन कवियों का ज़िक्र किया है, उनके हुनर को न सिर्फ उभारा है, बल्कि उनकी तुलना करने वाली खासियतों को भी सामने लाया है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर असलम जमशेद पुरी ने कहा कि उत्तर भारत में शोकगीत लिखने की शुरुआत मेरठ से हुई। प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी ने बेशक शोकगीत पर बहुत अच्छा काम किया है। हमारा सपना अब सच हो रहा है कि मेरठ को स्कूल बनाने के लिए हमने जो बीज बोए थे, वे अब फल देने लगे हैं और हमें खुशी है कि प्रोफेसर आबिद हुसैन हैदरी ने मेरठ को आगे लाने में हमारी मदद की है।
इस मौके पर फाखरी मेरठी ने भी अपनी शायरी पेश की और फरहत अख्तर ने हफीज मेरठी की एक गजल पेश करके मौके को खास बना दिया। कार्यक्रम में शौकत काजमी, मौलाना असगर अब्बास तकवी, अज़ीम हैदर नकवी, एडवोकेट सैयद मुहम्मद नकवी, मुहम्मद तकवी, मौलाना मुहम्मद अली तकवी, मुहम्मद इमरान तकवी, अफाक अहमद खान, जीशान खान, अनीस मेरठी, शाकिर मतलूब, मुहम्मद ईसा राणा, मुहम्मद शाह विज आलम, मुहम्मद नदीम, शहनाज परवीन, उज़मा सहर, मुहम्मद जुबैर और बड़ी संख्या में छात्र शामिल हुए।
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