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Monday, November 24, 2025

अयोध्या: श्री राम का ध्वजारोहण, सभी अटकलों का विराम

सपना सीपी साहू 
नित्य संदेश, इंदौर। सप्तपुरी में एक अयोध्या धाम में जब 22 जनवरी, 2024 को श्री राम जन्मभूमि मंदिर में रामलला का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह हुआ था, तब वह राम युग की नवआरंभ था। उस गर्वित दिवस ने सनातन संस्कृति के लिए आशा और संकल्प की दीपशिखा प्रज्वलित की। वह विजय यात्रा का प्रथम चरण था। 

अब, ठीक 22 माह के पश्चात, अयोध्या नगरी एक और ऐतिहासिक, प्रतीकात्मक क्षण की साक्षी बनने जा रही है। यह दिवस 25 नवंबर, 2025 का है, इस दिन मंदिर के नवनिर्मित ऊंचे शिखर पर 191 फीट का गौरवान्वित करता 'केसरिया ध्वज' लहराएगा। यह केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि राम भक्तों के सदियों के संघर्ष की पूर्णाहुति और मंदिर निर्माण प्रक्रिया का प्रतीकात्मक समापन होगा।इस दिन विवाह पंचमी का पुण्य पर्व है जो त्रेता युग की पुनर्स्मृति है। त्रेता में इस दिन ही विष्णु स्वरूप श्री राम और लक्ष्मी स्वरूपा सीता जी का पाणिग्रहण संस्कार हुआ था। सदियों के संघर्ष पश्चात यह ध्वजारोहण, विशेष रूप से विवाह पंचमी के पुण्य पर्व पर होना, इसके महत्व को और अधिक बढ़ा देता है। इस पावन पुनीत तिथि पर धर्म ध्वजारोहण पूरे सनातन समाज के लिए त्रेता युग की पुनर्स्मृति से कमतर नहीं है। यह क्षण हर सनातनी के लिए अखण्ड गर्व और भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है। साकेत आज पुनः दीपमाला, पुष्प-वर्षा, रंगोलियों और आधुनिक विद्युत सज्जा से शोभित है। जैसे अवधपुरी विश्व के सबसे मर्यादित दम्पत्ति अवध नरेश और मिथिला की राजकुमारी के पुनः मिलन का साक्षात् साक्षी बन रही है।
इस शुभ, हर्षित दिवस पर धर्म ध्वज का फहराना मर्यादा और गौरव का जीवंत प्रतीक है। 

यह केसरिया ध्वज सिर्फ एक वस्त्र खंड नहीं, बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति और सूर्यवंशीय परंपरा का दर्शन है। यह ध्वज मंदिर की पूर्णता का द्योतक है, क्योंकि शास्त्रों में मंदिर को तभी पूर्ण माना जाता है जब उसके शिखर पर धर्म-ध्वज स्थापित हो। यहां केसरिया रंग ध्वज सनातन धर्म के त्याग, शौर्य और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक है। यह सनातन धर्म की अटूट पहचान है। इस ध्वज पर ॐ और सूर्य का चिह्न भगवान राम के सूर्यवंश का स्पष्ट प्रतीक है। यह हमें मर्यादा पुरुषोत्तम की उस परंपरा से जोड़ता है जहां धर्म और सत्य सर्वोपरि हैं। वही इस ध्वज पर कोविदार का वृक्ष विशिष्ट प्रतीक है जो रामराज्य की समृद्धि, कल्याण और सार्वभौमिकता को दर्शाता है।

जब 191 फीट की ऊंचाई पर यह ध्वज लहराएगा, तो दूर से ही यह रामनगरी की पहचान बनेगा। यह धर्म ध्वज केवल मंदिर का नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के गौरव का प्रतीक होगा। जब 22 जनवरी पर प्रतिकात्मक शिखर के साथ श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह हुआ था तो इस ऐतिहासिक यात्रा में शंकराचार्यों द्वारा उठाए गए कुछ शास्त्रीय प्रश्नों (जैसे ध्वजारोहण से पूर्व प्राण-प्रतिष्ठा न करने) ने परंपरा और विधान के महत्व को रेखांकित किया था। उनका मर्म था शास्त्र सम्मत विधि-विधान की सर्वोच्चता को स्थापित करना। लेकिन अब यह दिवस भी आ ही गया जो ऐतिहासिक पुनरुत्थान और उनके मर्म का सम्मान है। 

आज, जब यह विजय धर्म पताका पूर्ण वैदिक विधि-विधान के साथ स्थापित हो रही है, तब यह स्पष्ट है कि निर्माण और धार्मिक अनुष्ठान अधूरा नहीं बचा है। यह ध्वजारोहण, जिसे मंदिर निर्माण की अन्तिम पूर्णता माना जाता है, सभी शास्त्रीय और लौकिक अपूर्णताओं पर विजय की मुहर लगाता है, जिससे यह सनातनियों के लिए दुगने हर्ष का विषय बन गया है। ध्वजारोहण समारोह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह अयोध्या के सांस्कृतिक पुनरुत्थान का उद्घोष है। सदियों के संघर्षों और बलिदानों के बाद, यह धर्म ध्वजा न्याय की विजय के सहर्ष का चिरस्थायी संकेत है।

श्री रामलला मंदिर निर्माण के समय कई विपक्षी राजनैतिक अटकलें भी निर्मूल सिद्ध हुई है। यह अडिग आस्था का ध्वजारोहण भी है। जब 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या-फैजाबाद सीट पर अप्रत्याशित परिणाम आया तो विपक्ष द्वारा भ्रमित किया गया था कि राम मंदिर का कार्य सही नहीं चलेगा, कार्य धीमा हो जाएगा आदि-आदि। लेकिन, प्रभु श्री राम का कार्य सत्ता की प्राथमिकता था, है और रहेगा। यह एक चुनाव का मोहताज नहीं है। सपा से सांसद मिला लेकिन भाजपा और संघ परिवार, विशेषतः विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण कार्य निर्बाध गति से चलाया और आज शिखर पर ध्वजा का फहराना कुविचार वाली विपक्षी राजनीतिक अटकलों को धूल चटाने जैसा है। यह सिद्ध हुआ कि राम मंदिर जन-आंदोलन, जन-आस्था और राष्ट्रीय संकल्प है। यह निर्माण, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर, जन-आस्था और राष्ट्र के संकल्प से हो रहा है, जिसकी ऊर्जा किसी क्षणिक राजनीतिक परिवर्तन से अप्रभावित है।

शुभ ध्वजारोहण भव्यता और रामराज्य का समरसता संदेश भी है। इस ऐतिहासिक अवसर पर रामनगरी को ऐसी भव्यता से सजाया गया है कि यह त्रेता युग का स्मृति दर्शन लगे। हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति, देश के प्रमुख संत-महात्माओं और गणमान्य अतिथियों का आगमन इस समारोह की महत्ता को और बढ़ा देगा। समूची अयोध्या स्वर्ग सदृश्य सुसज्जित है। ड्रोन से की जाने वाली पुष्प-वर्षा और शंख-घंटों की गूंज के बीच जब ध्वज शिखर पर पहुंचेगा, वह दृश्य अविस्मरणीय होगा।

श्री राम शबरी के जूठे बेर खाते हैं, निषाद राज को मित्र बनाते है, केवट को गले लगाते हैं। आज का यह ध्वजारोहण समारोह भी समरसता का संदेश दे रहा है। वनवासी, गिरिवासी, दलित, पिछड़े हर वर्ग के लोग इस उत्सव में सहभागी हैं। यह ध्वज केवल हिन्दू धर्म का नहीं, बल्कि समग्र मानवता के कल्याण और समानता के रामराज्य का प्रतीक है।

आज, विवाह पंचमी के मंगलमय अवसर पर, प्रभु श्री राम की जय-जयकार केवल मुख से नहीं, बल्कि शिखर पर लहराती विजय पताका के माध्यम से अनंत आकाश में गूंज रही है। यह ध्वजारोहण रामलला के शिखर पर एक युग की पूर्णता की घोषणा और समस्त अटकलों को विराम देता है।
जय-जय सियाराम! 

लेखिका: 
सपना सी.पी. साहू स्वप्निल

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