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Tuesday, November 18, 2025

वामा साहित्य मंच की मासिक बैठक में गूंजी 'जनजातीय संस्कृति की पहचान'


सपना सीपी साहू 
नित्य संदेश, इंदौर। शहर के प्रतिष्ठित वामा साहित्य मंच ने अपनी मासिक बैठक में इस बार एक अत्यंत महत्वपूर्ण, संवेदनशील व संस्कृति के अभिन्न विषय "हमारी जनजातियां, हमारी पहचान - जल, जंगल, जमीन के साथी, हमारे आदिवासी" पर केंद्रित एक सफल आयोजन किया। मासिक बैठक में मां शारदे की वंदन स्तुति प्रतिमा जाट ने की। 

मंच की अध्यक्ष ज्योति जैन ने अपने स्वागत उद्बोधन में इस बार के अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने जनजातीय समाज को भारतीय संस्कृति का अभिन्न और मौलिक हिस्सा बताते हुए उनके जीवन मूल्यों, प्रकृति प्रेम और विशिष्ट पहचान को समझने तथा संरक्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। तिब्बत की मिश्मी जनजाति प्रकाश डालते हुए उनके जीवन-दर्शन को बताया जो हमें जीवन चरित्र और प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाना सिखाते है। हमें उनके अनूठे साहित्य, कला, पर्यावरण चेतना, आत्मनिर्भरता और परंपराओं के बारे में अधिक जानने की प्रेरणा देते है। यह आयोजन हमारी जनजातीय विरासत के प्रति सम्मान और जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। तत्पश्चात मंचासीन अतिथियों ने नव चयनित युवा डिप्टी कलेक्टर हर्षिता दवे को सम्मानित किया। 

कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हुए मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध विद्वान डॉ. सखाराम मुजाल्दे उपस्थित रहे। उन्होंने वामा साहित्य की समयबद्धता की प्रशंसा की तथा बताया कि आदिवासी समाज महिला प्रधान होता है। नारी सशक्तिकरण क्या है देखना है तो जनजातीय समाज को देखें, उनको देखकर आश्चर्य होगा कि वे नारी स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, वर्चस्व में शहरी महिलाओं से बढ़कर है। जब देश गुलाम था तो जो लोग अंग्रेजो के चंगुल में नहीं आना चाहते थे, वे जंगलों में बस गए, वे ही अब आदिवासी है। उनमें देशभक्ति, वफादारी बहुत है, वे अमीरी-गरीबी में नहीं बल्कि समानता में विश्वास करते है। 

एक वाकया सुनाते हुए कहा कि जब उन्होंने अपने आदिवासियों को बताया कि शहर में मेरी ऊंची तनख्वाह है, तो उल्टा उनको सुनने को मिला कि लेकिन तू तो वहां बेचारा अकेला रहता है। उनका स्वाभिमान, अपनों से जुड़ाव की अद्भुत विचारधारा है। वे कल की चिंता नहीं करते, उनको जितने पानी की आवश्यकता होती है वे उतना ही भरकर रखते है। वे कम संसाधनों में गुजारा कर लेते है। उनके पास हमसे ज्यादा भौतिक संसाधन नहीं पर वे हमसे ज्यादा रईस है। मुल्जादे जी पहले व्यक्ति है जिन्होंने आदिवासी जीवन पर पीएचडी, एम.ए. आदि जैसी बड़ी डिग्रियां प्रारंभ की, जिसके लिए राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री तक उनकी प्रशंसा कर चुके है। वे विशेष रूप से बोले कि मध्यप्रदेश में तो पच्चीस प्रतिशत आदिवासी निवासरत है और उनके बारे में जानना और उनसे जीवन जीने की कला, पर्यावरण संरक्षण सबको सीखना चाहिए। 

इसके बाद विभिन्न कवयित्रियों और साहित्यकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से जनजातीय जीवन, कला और संस्कृति के बहुरंगी पहलुओं को उजागर किया।आशा मुंशी और नूपुर प्रणय वागळे ने भावपूर्ण आदिवासी गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया, जबकि सारिका भवालकर, उषा गुप्ता और शांता पारेख ने गद्य के माध्यम से जनजातीय जीवन के बारे में गहन जानकारी प्रस्तुत की। रचना चोपड़ा, प्रीति मकवाना, वाणी जोशी ने क्रमशः एकल लोकगीतों और जनजातीय गीतों की प्रस्तुति दी। तनुजा चौबे ने 'भगोरिया हाट' जैसे उत्सव धर्मी विषय पर प्रस्तुति दी। सुजाता देशपांडे ने मराठी आदिवासी गीत प्रस्तुत कर प्रादेशिक संस्कृति की झलक दिखाई। नीरजा जैन की नाट्य प्रस्तुति ने जनजातीय संघर्षों और जीवनशैली को जीवंत कर दिया। 

कलात्मक प्रस्तुतियों की श्रृंखला में संगीता जैन ने चित्रों के माध्यम से विषय को प्रस्तुत किया, जबकि सरला मेहता, शैला अजबे और गायत्री मेहता की तिकड़ी ने मनमोहक गीत और नृत्य की प्रस्तुति दी। अंत में, भावना बर्वे और कविता अर्गल ने अपनी नृत्य प्रस्तुतियों से कार्यक्रम को एक शानदार समापन दिया।

कार्यक्रम में उपस्थित सभी सदस्यों और अतिथियों ने जल, जंगल और जमीन के साथ आदिवासियों के गहरे जुड़ाव और उनके अमूल्य सांस्कृतिक योगदान को महसूस किया। मंच संचालन की जिम्मेदारी रश्मि चौधरी ने कुशलतापूर्वक निर्वहन की। अंत में, अंजना चक्रपाणि मिश्रा ने सभी सहभागियों का आभार व्यक्त किया।


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