सर सैयद समारोह के दूसरे दिन उर्दू विभाग में राष्ट्रीय संगोष्ठी और बैत-बाज़ी प्रतियोगिता आयोजित
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। सर सैयद का मिशन न केवल वर्तमान के लिए था, बल्कि भविष्य पर भी नज़र रखता था। सर सैयद केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं थे। उन्होंने अपने भाइयों और बहनों के लिए भी शिक्षा की व्यवस्था की। जब तक धार्मिक शिक्षा नहीं होगी, दुनिया में शिक्षा नहीं होगी। सर सैयद का मिशन, उनकी सोच, आज वह सपना बेहतरीन तरीके से पूरा हो रहा है। ये शब्द प्रोफ़ेसर जमाल अहमद सिद्दीकी के थे, जो उर्दू विभाग में तीन दिवसीय सर सैयद समारोह के दूसरे दिन संगोष्ठी के दूसरे सत्र में अपना भाषण दे रहे थे।
इससे पहले, कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी द्वारा पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। नात प्रसिद्ध शायर वारिस वारसी ने पेश की। अध्यक्षीय मंडल में प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी, प्रोफेसर जमाल अहमद सिद्दीकी, डॉ. नबील अहमद, डॉ. दिलशाद सैफी और डॉ. आसिफ अली रहे। संचालन डॉ. इरशाद सियानवी और धन्यवाद ज्ञापन अफाक अहमद खान ने किया। संगोष्ठी में नुज़हत अख्तर, आईएनपीजी गर्ल्स कॉलेज, मेरठ ने "सर सैयद अहमद खान और पत्रकारिता", उज़मा सहर ने "सर सैयद के विरोधी", आसिया मैमुना, दिल्ली ने "सर सैयद और वैज्ञानिक समाज", सैयदा मरियम इलाही, मेरठ ने "सर सैयद की शैक्षिक अंतर्दृष्टि और आधुनिक गद्य का मार्गदर्शन" और अमरीन नाज़, खुर्जा ने सर सैयद के विचारों और कार्यों पर अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।
इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि निबंधकारों को बिना किसी भूमिका के मूल विषय पर आना चाहिए। उन्होंने छात्रों को यह भी निर्देश दिया कि जब भी आप निबंध लिखें, तो उसमें दोहराव नहीं होना चाहिए और निबंध में अपने निष्कर्ष स्वयं निकालने चाहिए।
डॉ. नबील अनवर ने कहा कि सर सैयद ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को केवल एक शैक्षणिक संस्थान ही नहीं बनाया, बल्कि इसे विश्व का सर्वश्रेष्ठ संस्थान बनाने का प्रयास किया। सर सैयद ने केवल मुसलमानों के लिए ही शिक्षा की व्यवस्था नहीं की, बल्कि वे सम्पूर्ण भारतीय राष्ट्र की शिक्षा के प्रति चिंतित थे। उनके आंदोलन में प्रत्येक व्यक्ति को प्रश्नों से नहीं घबराना चाहिए, बल्कि अपने विषय का इतना ज्ञान होना चाहिए कि वह किसी भी प्रश्न का तुरंत उत्तर दे सके।
प्रोफ़ेसर असलम जमशेद पुरी ने कहा कि छात्रों को शोध पत्र प्रस्तुत करते हुए समय का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। उन्हें कम समय में अपनी बात कहने में सक्षम होना चाहिए और अपने विषय को कवर करने के साथ-साथ छात्रों को अंत में यह निष्कर्ष भी निकालना चाहिए कि इस शोध पत्र से उन्हें क्या लाभ हुआ। सर सैयद ने शिक्षा को लोकप्रिय बनाने का काम किया।
दोपहर में उर्दू विभाग के प्रेमचंद सेमिनार हॉल में वी-कमिट सोसाइटी के सहयोग से बैत बाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता वी-कमिट सोसाइटी की संस्थापक एवं अध्यक्ष रमा नेहरू ने की। फैज महमूद, हाजी सलीम सैफी ने मुख्य अतिथिगण के रूप में भाग लिया। वी-कमिट सोसाइटी के महासचिव अतुल सक्सेना और एडवोकेट नदीम कौसर ने विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लिया। बैत बाजी में निर्णायक की भूमिका प्रसिद्ध शायर डॉ. फुरकान सरधनवी और वारिस वारसी ने निभाई।
संचालन उर्दू विभाग की शोध छात्रा सैयदा मरियम इलाही ने किया। प्रतियोगिता में चार टीमों ने भाग लिया, जिनमें मुस्लिम डिग्री कॉलेज बुलंदशहर की सहर इश्काबादी, आईएनपीजी गर्ल्स कॉलेज की अंजुम जमाली, उर्दू कैंपस के हफीज मेरठी और मेरठ कॉलेज की सागर निजामी शामिल थीं। श्रोताओं ने प्रत्येक शेर का भरपूर आनंद लिया और इस्माइल नेशनल गर्ल्स कॉलेज, अंजुम जमाली की टीम विजेता रही और हफीज़ मेरठी उर्दू कैंपस की टीम दूसरे स्थान पर रही जबकि सहर इश्काबादी मुस्लिम गर्ल्स डिग्री कॉलेज बुलंदशहर ने तीसरा स्थान हासिल किया।
इस अवसर पर वी-कमिट सोसाइटी की संस्थापक और अध्यक्ष रमा नेहरू ने कहा कि आज का बैत बाज़ी कार्यक्रम वास्तव में उत्कृष्ट था और मुझे स्वयं यह कार्यक्रम बहुत पसंद आया। ऐसे कार्यक्रम न केवल रोचक होते हैं बल्कि छात्रों में पढ़ने की रुचि के साथ-साथ आकर्षण भी पैदा करते हैं। हमें इस परंपरा को और अधिक तीव्रता के साथ आगे बढ़ाना होगा। हमें उर्दू शायरी का उपयोग न केवल भाषा की समझ बल्कि साहित्य, शिष्टाचार और भेद-भाव भी सीखने को मिलता है।
इस अवसर पर डॉ. आसिफ अली, डॉ. अलका वशिष्ठ, डॉ. आमरीन, डॉ. इफ्फत जकिया, डॉ. इरशाद सियानवी, डॉ. फराह नाज, डॉ. ताबिश फरीद, फैजान जफर सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
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