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Saturday, September 6, 2025

सीसीएसयू शोध: जूतों से मोबाइल और दिल की धड़कन से चार्ज होगा पेसमेकर


सीसएसयू ने विकसित किया पाइजोइलेक्ट्रिक नैनोजनरेटर, उंगली दबाने से उत्पन्न हो रही 4.5 वोल्ट की बिजली

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ: चलने, दौड़ने से आपका मोबाइल चार्ज हो सकता है। सांस लेने व दिल की धड़कनों से आपका पेसमेकर चार्ज हो सकता है। इतना ही नहीं आपके इलेक्ट्रिक वाहन में लगे टायर से बिजली उत्पन्न कर कार को चार्ज भी कर सकते हैं। यह पहली बार सुनने में अजीब जरूर लगता है, लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक इस दिशा में सफल हो रहे हैं। इसी कड़ी में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को उक्त पद्धति में कचरे यानी वेस्ट मैटेरियल से ऊर्जा उत्पादन करने में बड़ी सफलता मिली है। भविष्य की स्वच्छ ऊर्जा के लिए टूडी हाइब्रिड और बायोडिग्रेडेबल नैनोजनरेटर पाइजोइलेक्ट्रिक उपकरण तैयार कर लिया है। ऊर्जा संकट और पर्यावरएण प्रदूषण के बीच यह उपलब्धि एक नई उम्मीद जगा रही है।

आइआइटी दिल्ली से बीटेक करने वाले शोधार्थी रवि कुमार ने सीसीएसयू के भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा के मार्गदर्शन में विभाग की प्रयोगशाला में यह उपकरण तैयार कर लिया है जो रोजमर्रा की हलचल और प्राकृतिक गतिविधियों से बिजली पैदा कर सकता है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इससे बने नैनोजेनेरेटर बेहद छोटे, हल्के और लचीले हो सकते हैं। इन्हें कपड़ों, घड़ियों, जूतों या यहां तक कि त्वचा पर चिपकाए जाने वाले सेंसरों में भी लगाया जा सकता है। जब इंसान चलता है, दौड़ता है या सांस लेता है, तो शरीर की इन हरकतों से उत्पन्न ऊर्जा को यह उपकरण बिजली में बदल सकता है। इसी बिजली से घड़ियां, फिटनेस ट्रैकर या स्वास्थ्य निगरानी उपकरण आसानी से चल सकते हैं। यही नहीं, भविष्य में सड़कों पर चलते वाहनों से निकलने वाली कंपन को भी ऐसे नैनोजेनेरेटर से बिजली में बदला जा सकता है। प्रयोगशाला में इस उपकरण से उंगलियों से सामान्य दबाव से ही 4.5 वोल्ट तक की बिजली उत्पन्न करने में सफलता मिल गई है। दबाव बढ़ाने पर यह 20 वोल्ट तक ऊर्जा उत्पन्न कर रही है।
पाइजोइलेक्ट्रिक नैनोजनरेटर मुख्य रूप से जिंक आक्साइड, बैरियम टाइटनेट और पालीविनिलिडीन जैसे पाइजोइलेक्ट्रिक फ्लोराइड पदार्थों से बनता है। यह पदार्थ जब किसी बल के संपर्क में आते हैं, तो इसके भी धनात्मक और ऋणात्मक आवेश एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं जिससे एक वोल्टेज एसी यानी एल्टरनेटिंग करेंट उत्पन्न होता है। पाइजोइलेक्ट्रिक प्रभाव कोई नई खोज नहीं है। इसे सबसे पहले 1880 में क्यूरी बंधुओं ने पहचाना था, जब उन्होंने पाया कि कुछ खास पदार्थ दबाव या खिंचाव पड़ने पर विद्युत आवेश उत्पन्न करते हैं। लेकिन इसका असली उपयोग नैनोस्तर पर 2006 में हुआ, जब प्रोफेसर झोंग लिन वांग ने जिंक आक्साइड नैनोवायर की मदद से पहला नैनोजेनेरेटर तैयार किया। यही से इस तकनीक का नया सफर शुरू हुआ।
शोधार्थी रवि कुमार की तकनीक पहले से मौजूद पाइजोइलेक्ट्रिक नैनोजनरेटर्स पर ही आधारित है, लेकिन इसका बायोडिग्रेडेबल रूप पहली बार सामने आया है। उन्होंने इसमें और सुधार करते हुए टूडी हाइब्रिड और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उपयोग किया है। टूडी हाइब्रिड सामग्री बेहद पतली होती है, फिर भी बहुत मजबूत होती है। इनमें अपने आप में बिजली पैदा करने की क्षमता होती है। दूसरी ओर बायोडिग्रेडेबल सामग्री की खासियत यह है कि ये पूरी तरह प्राकृतिक रूप से नष्ट हो जाती हैं। यानी अगर इनसे बना कोई उपकरण खराब हो जाए तो वह कचरे की तरह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएगा, बल्कि मिट्टी में घुलकर खत्म हो जाएगा। इसके अलावा, ये शरीर में लगाए जाने वाले चिकित्सा उपकरणों के लिए भी सुरक्षित हैं।
यह हैं इस उपकरण के उपयोग
जूते और मोबाइल चार्जिंग : चलते समय जूते में लगे उपकरण से मोबाइल फोन चार्ज।
स्वास्थ्य क्षेत्र : हृदय की धड़कन से उत्पन्न ऊर्जा से पेसमेकर लगातार चार्ज होता रहेगा।
सार्वजनिक स्थल : ट्रैफिक लाइट, संकेतक (इंडिकेटर) और आपदा स्थलों पर बिजली की आपूर्ति।
स्मार्ट वाहन और एआइ आधारित उपकरण : इलेक्ट्रिक वाहन, स्मार्ट वाच और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित डिवाइस।
समुद्री लहरों से ऊर्जा : समुद्र की लहरों से बिजली उत्पादन कर इस्तेमाल।
कचरे से ऊर्जा : वेस्ट मैटेरियल का उपयोग कर पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा समाधान।

इनका कहना है...
-सिर्फ एक वैज्ञानिक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य की ऊर्जा क्रांति का संकेत हैं। ये न केवल हमारी छोटी-छोटी बिजली की जरूरतों को पूरा करेंगे, बल्कि पर्यावरण को भी बचाए रखेंगे। ऐसे में यह तकनीक आने वाले वर्षों में हमारे स्मार्टफोन, पहनने योग्य गैजेट्स और स्वास्थ्य उपकरणों को बिना बैटरी के चलाने की दिशा में एक बड़ी छलांग साबित हो सकती है। आपदा में फंसे लोग पैदल चलकर मोबाइल चार्ज कर संपर्क कर सकेंगे।
प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा, 
आचार्य, भौतिक विज्ञान विभाग, सीसीएसयू

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