आस्था माँ के 'चरित्रहीन' वाले बयान पर आरूषी का पलटवार: 'अज्ञानी और ढोंगी हैं आप,' पौराणिक उदाहरणों से सिखाया सनातन धर्म का पाठ
नित्य संदेश ब्यूरो
देहरादून: खुद को साध्वी बताने वाली 'आस्था माँ' के उस वायरल वीडियो पर बवाल मच गया है, जिसमें उन्होंने 95% भारतीय महिलाओं को 'चरित्रहीन' बताया है। इस आपत्तिजनक बयान से भड़कीं देहरादून की पूर्व मेयर प्रत्याशी और ध्यानदीप की मुख्य आचार्य आरूषी सुंद्रियाल ने आस्था माँ को 'अज्ञानी' बताते हुए उनके चरित्र पर ही सवाल उठा दिया और सार्वजनिक रूप से वर्जिनिटी टेस्ट की मांग कर डाली।
वीडियो में आस्था माँ ने एक और विवादित बयान देते हुए कहा, "मैं लड़कों से कहना चाहती हूँ कि छिनारें (वेश्याएं) के पास चले जाना जो हजार-पंद्रह सौ में मिल जाती हैं, पर शादी मत करना।" आरूषी सुंद्रियाल ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए आस्था माँ को "वेश्याओं का ब्रांड एम्बेसडर" करार दिया। यह विवाद तब और गहरा गया, जब आस्था माँ ने सुप्रीम कोर्ट के उस महत्वपूर्ण फैसले पर भी आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया है कि "यदि पत्नी की संतान जैविक रूप से किसी और की भी हो, तो उसे पति की संतान माना जाएगा।" आस्था माँ ने इस पर कोर्ट का भी विरोध किया। आरूषी ने आस्था माँ के इस तर्क को बेतुका बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने समझाया कि यह कानून, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 112 के तहत, परिवार की स्थिरता और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया है।
आरूषी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला इसलिए देना पड़ा क्योंकि अक्सर पति-पत्नी के बीच विवाद होने पर पति सबसे पहले अपनी ही पत्नी के चरित्र पर उंगली उठाते हैं। अधिकतर पति तो अपनी संतान को भी अपना मानने से इनकार कर देते हैं और बच्चे के भरण-पोषण का खर्च नहीं देते। ऐसे में अगर सालों बाद डीएनए टेस्ट से यह पता चल भी जाए कि संतान पति की ही है, तब तक बच्चे की पढ़ाई और पत्नी व बच्चे को हुई मानसिक प्रताड़ना के नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती। आरूषी ने कहा कि तलाक की स्थिति में अधिकतर पति केवल आर्थिक नुकसान के लिए रोते रहते हैं, जबकि अगर वे अपनी पत्नी और बच्चों की चिंता करें तो परिवार बच सकते हैं।
आरूषी सुंद्रियाल ने आस्था माँ के ज्ञान पर सवाल उठाते हुए सनातन धर्म से कई ऐतिहासिक और पौराणिक उदाहरण पेश किए। उन्होंने बताया कि किस तरह से भगवान गणेश का जन्म, अशोक सुंदरी का जन्म और महाभारत में विचित्रवीर्य की मृत्यु के बाद नियोग विधि से धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर का जन्म हुआ। इन सभी मामलों में जिन्हें पिता माना गया, वे जैविक रूप से पिता नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्हें ही पिता का दर्जा प्राप्त हुआ। आरूषी ने पांडवों के जन्म का भी उदाहरण दिया, जिसमें पांचों भाई अलग-अलग देवताओं से जन्मे थे, लेकिन वे सभी पांडु की संतान कहलाए।
आरूषी सुंद्रियाल ने इन उदाहरणों से स्पष्ट किया कि सनातन धर्म में हमेशा से जैविक संबंधों से बढ़कर परिवार और रिश्ते की पवित्रता को महत्व दिया गया है। उन्होंने कहा कि आस्था माँ का बयान न केवल कानून का अपमान है, बल्कि यह सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों के भी विरुद्ध है। उन्होंने आस्था माँ को ज्ञान के अभाव में महिलाओं और समाज के खिलाफ जहर उगलने का दोषी ठहराया।
यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रहा है और इसने एक नई बहस छेड़ दी है, जिसमें लोग आरूषी सुंद्रियाल के तर्कों का समर्थन कर रहे हैं और आस्था माँ के बयानों की कड़ी निंदा कर रहे हैं।
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