नित्य संदेश। भारत में जब बात चल रही हो पुराने दौर की तो, मनोरंजन की रीत में रचे-बसे श्रवण माध्यम के रूप में याद आता है रेडियो। रेडियो, 60 से 80 के दशक में भारतीयों के दिलों पर राज करता था। पुराने दौर में रेडियो न केवल मनोरंजन का साधन था, बल्कि जागरूकता का स्त्रोत और समसामयिक मुद्दों पर प्रकाश डालने का महत्वपूर्ण इलेक्ट्रीक संचार माध्यम भी रहा। इसे हम उस जमाने के लोगों का मन बहलाने वाला मित्र भी कह सकते है क्योंकि, उस समय के जन इसे अपने साथ कंधे, साइकिल पर रखकर घूमने में अपनी शान समझते थे।
घर के बैठक कक्ष में रखा रेडियो घर की सम्पन्नता का बखान खुद-ब-खुद कर देता था। दशकों तक घरों में इसे सजावट के लिए रखा जाता था। यह तो विवाह में दिया जाने वाला उपहार तक होता था और लोग इसे इतना सहेजकर रखते थे कि इसके नाप के कव्हर बनाकर गृहणियां उस पर बेलबूटों की कढ़ाई तक करती थी।
आज की युवा पीढ़ी ने भले ही रेडियो के विभिन्न स्वरूप न देखे हो पर वे इसकी दिवानगी का अंदाजा, स्वयं का मोबाइल के प्रति जो लगाव है उससे आसानी से लगा सकते है। आज भी घर में बड़ों के पास बैठकर पुरानी बातें की जाए तो वे रेडियो के कार्यक्रमों को सुनहरी यादों में खो जाते हैं।
बिनाका गीतमाला, हवामहल, आज के फनकार, छायागीत, हिंदी वार्ता, श्रमिक जगत, संतजनों की महफ़िल, हैलो फरमाइश, खेती-किसानी आदि जैसे कार्यक्रमों से जुडे़ कई किस्से सुना देते हैं। वे बताते है कि उस समय रेडियों प्रसारण का समय दिनभर नहीं बल्कि समय-समय पर होता था। जिसके लिए उनका बेसब्री से इंतजार रहता था। वे समय पर अपने काम निपटाकर रेडियो के कार्यक्रमों की प्रतीक्षा, घरभर के साथ, तो कभी सामूहिक रूप से ग्राम की चौपालों पर करते थे।
आज हम जितनी आसानी से मनोरंजन के माध्यमों से जुडे़ है, वह हमारे पूर्वजों के लिए उतना सहज नहीं था। उस दौर में एक-एक मनपसंद गीत सुनने के लिए रेडियो स्टेशन पर फरमाइश की चिट्ठी भेजी जाती थी। अब चाहे दुनिया विश्वग्राम हो गई हो पर उस समय गाँव-मोहल्लों के लोग एक-दूजे के घरों में बैठ जलपान संग रेडियो का आनंद लेते थे।
रेडियो ही वह इलेक्ट्रानिक श्रवण माध्यम रहा है जिसमें हमारे देश की ब्रिटिश शासन से मुक्ति और हमारी स्वतंत्रता की प्रसन्नता का प्रथम समाचार प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने 1947 में सुनाया था। तो देश की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1975 में इमरजेन्सी लगने पर दुखी न होने का संदेश भी दिया था। 1971 में भारत, पाकिस्तान के युद्ध में भारत की गर्वित जीत की खबर भी हमें रेडियो ने पहुंचाई। इस तरह, रेडियो कई महत्वपूर्ण अवसरों पर पूरे भारत के जनमानस को सुख-दुख की खबरों से जोड़ता रहा और आज भी जोड़ता है यह बात सुनिश्चित हो जाती है।
1982 में भारत में टी.वी. के व्यापक प्रसार के साथ रेडियो का आकर्षण धूमिल हुआ पर आज भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। आज भी लोगों का एफ एम से अपना सा जुड़ाव हैं, जिसे सुन वे अपनी आसपास से दूर तक की यात्रा पूरी करते है।
अब हम चलते है वैज्ञानिक गुग्लिल्मों मार्कोनी के इतने महत्वपूर्ण अविष्कार के बाद भारत में कैसे रेडियो की शुरुआत हुई जानने की ओर... पुराने समय में 23 जुलाई, 1927 में भारत में प्रथम वायसराय लाॅर्ड इरविन ने मुंबई में प्रथम रेडियो केन्द्र का शुभारम्भ किया था। पर तब इसकी फ्रिक्वेंसी इतनी उम्दा नहीं थी और प्रसारण की गुणवत्ता भी टूटी-फूटी थी। 1930 में इण्डियन ब्राडकाॅस्टिंग कम्पनी का राष्ट्रीयकरण हुआ। उसके बाद 1936 में इण्डियन ब्राडकाॅस्टिंग सर्विस को आल इंडिया रेडियो नाम दिया गया। इसी से भारत में प्रथम समाचार प्रसारित हुआ। वैसे, तो भारत में निजी तौर पर रेडियो क्लब 1923 से प्रारंभ हुए थे। 1923 में रेडियो क्लब आफ बाम्बे और पांच माह पश्चात् कलकत्ता में भी रेडियो क्लब शुरू हुआ। वैसे इन दोनों के ट्रांसमीटर इतने शक्तिशाली नहीं थे। इसलिए, इनकी पहुँच सेवा ज्यादा अच्छी नहीं थी।
सन् 1947 में भारत की आजादी के पूर्व भारत में 9 रेडियो स्टेशन थे। लेकिन बंटवारे से 3 रेडियो स्टेशन पाकिस्तान में चले गए। भारत के पास मात्र दिल्ली, बाम्बे, कलकत्ता, मद्रास, तिरुचिरापल्ली और लखनऊ के स्टेशन ही शेष रहे। 1956 में आल इंडिया रेडियो का नाम आकाशवाणी हुआ। जिसका अर्थ आसामान से तरंगित बोल होता है। इसके अगले ही वर्ष विविधभारती का आरंभ हुआ। जिससे तीन तरह के कार्यक्रम जो संगीत संबंधी, समाचार संबंधी तथा उच्चारित शब्दों से आपसी बोलचाल संबंधी कार्यक्रम के रूप में प्रसारित किए जाने का निर्णय लिया गया। यह भारत का राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो प्रसारक और प्रसार भारती का एक प्रभाग है। यह देश का एक सरकारी संगठन है जो बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय के सिद्धांत से प्रसारित होने वाला श्रवण संचार साधन है।
आकाशवाणी का यह सफर जो छः स्टेशनों के शेष से चला उसने पूरे भारत में कुछ ही वर्षो में अपने पैर पसार लिए। आकाशवाणी या एयर इंडिया रेडियो, भाषाओं की संख्या के मामले में दुनिया के सबसे बड़े प्रसारण संगठनों में से एक है। एआईआर के देश भर में 413 स्टेशन हैं और इसकी पहुंच हमारे देश के 99.19% हिस्से में है। आकाशवाणी का 23 भाषाओं और 146 बोलियों में प्रसारण होता है। इसकी उपलब्धता राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय दोनों स्तर पर है। भारत का रेडियो दुनिया का सबसे बड़ा रेडियों नेटवर्क है यह हमारे लिए गर्व का विषय है।
जब समय के साथ जब टीवी का बोलबाला हुआ तो घरों में रेडियो की जगह टीवी ने ली और कुछ समय के लिए जनमानस का इससे मोहभंग भी हुआ। पर हमारे देश के वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने अपने मन की बात, आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए पुनः रेडियो का सहारा लिया जिससे इसके आकर्षण पर जमी धूल हटी है। अब रेडियो के आधुनिकीकरण व युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए रेडियो मिर्ची, रेड एफएम, रेडियो सीटी , एफएम तड़का आदि चैनल भी है। जिसे अलग-अलग एफएम नं पर ट्यून करकर जनमानस आज पुनः मनोरंजन के समंदर में गोते लगा रहे है।
रेडियो से सुनाई देने वाली आवाजों के प्रति लोगों का आकर्षण सदैव सिर चढ़कर बोला है। इसी रेडियो ने मेलवेन डिमेल, देवकीनंदन पाण्डे, अमीन सयानी, सुरेश सरैया, जसदेवसिंह, सुरजीत सेन, वरूण हलधर की आवाज़ को हम तक पहुंचाकर, इन्हें विशेष बनाया था और आज भी जो उद्घोषक और आरजे रेडियो से जुडे़ है, वे बहुत सराहे जाते है। पुराने समय में अमीन सयानी का बिनाका गीत माला सबसे अधिक सुना जाता था। यह कार्यक्रम गीतों की प्रसिद्धि पायदान बदलने के साथ बताता था। लोग अपने प्रिय के जन्मदिन के बधाई संदेश और मनपसंद गीतों को सुनने की इच्छा भी रेडियो पर पत्रों के माध्यम से करते थे। रेडियो कार्यक्रमों के बीच में लोग गीतों के साथ अपना नाम सुनते ही हर्ष से गर्वित होते थे। लोगों ने रेडियो पर ही आलम आरा, सुरैया बेगम, गीता दत्त, लता मंगेशकर को सर्वप्रथम सुना। नितिन बोस, रफी, मुकेश, किशोर दा को सुनकर मगन हुए है। इन सबके गाए गीतों को जन-जन ने अपने जीवन का हिस्सा बनाया था। रेडियो 60-80 के दशक में जनमानस के जीवन का अभिन्न अंग था।
बदलाव प्रकृति का नियम है और समय के साथ रेडियो ने भी विभिन्न आकार-प्रकार बदले है। इनके बदले आकार प्रकार को दिखाने के लिए भारत में कई जगह पर एंटिक रेडियो को सजावट के साधन के रूप में रखा गया है। महाराष्ट्र में भीमाशंकर महादेव के दर्शन के लिए जाने पर एक होटल में आज भी प्रारंभ से लेकर आज तक के बदले स्वरूपों के रेडियो को हम सरलता से देख सकते हैं। अब रेडियो भले ही उस समय जैसे लम्बे-चौड़े बक्सेनुमा न रहकर हमारी जेब में रखे मोबाइल में सिमटकर हमारे साथ सदा चलने लगे हो। पर वह पुरानी चीज़ अलग और खास थी। आज भी हैदराबाद में मेहबूब रेडियो सर्विस सेंटर से लोग एंटिक रेडियो लेने और सुधरवाने देश-विदेश से आते है। पुरानी वस्तुएं सदा कीमती होती है, जिनका इतिहास स्वर्णाक्षरों में दर्ज होता है। यह बात हमें एंटिक रेडियो बताते है। हम कह सकते है कि रेडियो की रीत से लोगों की प्रीत उच्चकोटी की थी, है और रहेगी।
सपना सी.पी. साहू "स्वप्निल"
इंदौर (म.प्र.)
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