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Wednesday, June 11, 2025

सेरेब्रल वेनस थ्रोम्बोसिस नामक बीमारी का मेडिकल कॉलेज में किया गया सफल इलाज

 


नित्य संदेश ब्यूरो

मेरठ। लाला लाजपत राय स्मारक मेडिकल कॉलेज में सेरेब्रल वेनस थ्रोम्बोसिस नामक बीमारी का सफल इलाज किया गया। 22 वर्षीय मरीज़ ज्योति की लगभग डेढ़ महीने पहले से दोनों आंखों की रोशनी चली गई थी। मरीज ने प्राइवेट चिकित्सालय में कई बार संपर्क किया एवं अपना इलाज कराया, जहां पर उन्हें बताया गया कि वे ब्रेन ट्यूमर बीमारी से ग्रसित है।


मीडिया प्रवक्ता ने बताया कि इसके बाद वे काफी दिन न्यूरो सर्जरी विभाग में भर्ती भी रही, परंतु उन्हें कोई लाभ नहीं हुआ। मरीज ने मेडिकल कॉलेज के न्यूरोलॉजी विभाग की ओपीडी में डॉ. दीपिका सागर से संपर्क किया एवं अपनी संपूर्ण स्थिति से उन्हें अवगत कराया। डॉ. दीपिका सागर ने उन्हें भर्ती होने की सलाह दी एवं उनकी कुछ विशेष दिमाग की नसों की जांच व ब्रेन एंजियोग्राफी जांच की गई, तदोपरांत पाया गया कि उनके दिमाग की नसों में खून के थक्के जम गए हैं और उन्हें सेरेब्रल वेनस थ्रोम्बोसिस नाम की बीमारी है। जिसके उपचार के लिए उन्हें विशेष प्रकार की इंजेक्शन एवं दवाइयां दी गई, तत्पश्चात मरीज की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे आनी शुरू हो गई। लगभग 3 हफ्तों में उनकी दोनों आंखों की रोशनी पूरी तरह से वापस आ गई डॉ. दीपिका सागर ने बताया कि उनकी सभी जांच एवं इलाज उत्तर प्रदेश सरकार की लाभकारी योजना आयुष्मान योजना के अंतर्गत पूर्णतया निशुल्क किया गया है।


डॉ. सागर ने बताया कि इस बीमारी के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें मुख्य कारण डिहाइड्रेशन (पानी की कमी) एवं एनीमिया (खून की कमी) है। इस बीमारी का शुरुआत में ही डॉक्टर द्वारा पकड़ पाना काफी कठिन होता है, जितनी जल्दी इस बीमारी की डायग्नोसिस बन जाती है, उतनी जल्दी ही मरीज को फायदा पहुंचता है, यह बीमारी किसी अन्य लक्षण के रूप में भी आ सकती है, जैसे की तेज सर दर्द होना, मिर्गी आना, कान से सुनने की शक्ति कम हो जाना, धुंधला दिखाई देना या पूर्णतया ना दिखाई देना, शरीर के किसी भी हिस्से का सुन्न हो जाना या काम न करना, तेज चक्कर आना इत्यादि।


यदि समय से बीमारी ना पकड़ी जाए या इलाज न मिल सके तो उपरोक्त लक्षण पूर्ण रूप में भी आ सकते हैं या मरीज़ कोमा में भी जा सकता है। डॉक्टर दीपिका सागर ने बताया कि यदि इस बीमारी का जल्दी पता चल जाता है तो संपूर्ण इलाज संभव होता है एवं मरीज बाद में अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।

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