नित्य संदेश।
1. भावनात्मक शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना
स्कूलों और कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित साप्ताहिक सत्र अनिवार्य हों।
युवाओं को भावनाओं को व्यक्त करने, सुनने और सहनशीलता की कला सिखाई जाए।
कॉउंसलिंग को सामान्य बनाना ज़रूरी है, ताकि मानसिक समस्याएं "कमज़ोरी" न समझी जाएं।
2. माता-पिता और परिवार की भूमिका
सुनने की आदत विकसित करें, हर बार केवल सलाह देना समाधान नहीं होता। बच्चों को खुले मन से संवाद का अवसर दें , डांट-डपट नहीं, साथ खड़े होने का अहसास ज़रूरी है।
किसी समस्या को "फालतू" कहकर टालना खतरनाक हो सकता है , हर चिंता, हर डर की अहमियत है।
3. डिजिटल दुनिया की समझ और नियंत्रण
बच्चों को तकनीक के अंधेरे पहलुओं से परिचित कराना ज़रूरी है,जैसे साइबर अपराध, ऑनलाइन शोषण, गेमिंग लत आदि। मॉनीटरिंग जरूरी है, लेकिन जासूसी नहीं, संवाद के साथ तकनीकी मार्गदर्शन दें। डिजिटल detox और वास्तविक जीवन के अनुभवों को बढ़ावा देना चाहिए (यात्रा, खेल, प्रकृति, सामाजिक सेवा)।
4. समाज और व्यवस्था की भूमिका
युवाओं के लिए करियर काउंसलिंग, स्किल डेवलपमेंट, और स्टार्टअप/स्वरोजगार के अवसर बढ़ाएं। सामुदायिक स्तर पर मनोचिकित्सक, लाइफ कोच, और स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हों। मीडिया और फिल्में सकारात्मक कहानियों को बढ़ावा दें, न कि ग्लैमराइज़ किए गए अपराध या आत्महत्या के दृश्य।
5. युवाओं को आत्म-चिंतन की दिशा में मोड़ना
उन्हें सिखाएं कि "विफलता अंत नहीं है", बल्कि नया आरंभ हो सकता है। धैर्य और लंबी सोच के लिए किताबें, प्रेरक कहानियां, ध्यान-योग और सामूहिक गतिविधियां उपयोगी हैं।
प्रस्तुति
नादिर राणा
लेखक एवं स्वतंत्र पत्रकार
मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश
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