नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल समापन शनिवार को हुआ। इस संगोष्ठी का आयोजन भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) के सहयोग से किया गया।
कार्यक्रम का मुख्य विषय था – भारत के एकीकरण में सरदार पटेल की विचारधारा एवं उनकी भूमिका के उत्प्रेरक के रूप में मीडिया की भूमिका विभिन्न तकनीकी सत्रों में देशभर के प्रबुद्ध विद्वानों, मीडिया विशेषज्ञों और शिक्षाविदों ने सरदार पटेल के जीवन, विचारधारा और स्वतंत्र भारत के निर्माण में उनके योगदान पर अपने विचार रखे।
समापन सत्र
समापन सत्र में मुख्य वक्ता अशोक चौधरी ने सरदार पटेल के ऐतिहासिक योगदान की चर्चा करते हुए कहा कि 565 में से 552 रियासतों का भारत में विलय सरदार पटेल की दूरदृष्टि, कूटनीति और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का परिणाम था। उन्होंने बताया कि नेहरूजी सरदार पटेल का इतना सम्मान करते थे कि उन्होंने इस कठिन कार्य के लिए स्वयं सरदार पटेल को ही नियुक्त किया। अशोक चौधरी ने बताया कि पटेल एक किसान परिवार से आते थे, लेकिन उनके कार्य सिद्धांत और ईमानदारी ने उन्हें भारत का लौह पुरुष बना दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रोफेसर अशोक कुमार ने कहा कि आजादी से पहले और आजादी के बाद दोनों ही दौर में सरदार पटेल की भूमिका अद्वितीय थी, और यही कारण था कि उन्हें स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में गृह मंत्री बनाया गया। सत्र का संचालन डॉक्टर मनोज कुमार श्रीवास्तव ने किया और समापन पर प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने सभी अतिथियों, प्रतिभागियों और आयोजकों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रथम तकनीकी सत्र
प्रथम तकनीकी सत्र में भारतीय जनसंचार संस्थान नई दिल्ली के प्रोफेसर प्रमोद कुमार ने सरदार पटेल के व्यक्तित्व और उनके स्पष्ट विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि सरदार पटेल जैसा कहते थे, वैसा ही करते थे। वे देश के पहले सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे और हिंदी भाषा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता की आवश्यकता को महसूस करते हुए वर्ष 1949 में प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की स्थापना की। प्रोफेसर कुमार ने कहा कि आज जब हम भारत को सशक्त होते देख रहे हैं, तो लगता है कि सरदार पटेल का सपना साकार हो रहा है। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष प्रोफेसर शुचि यादव ने राष्ट्रीय एकता की अवधारणा को एक जीवंत और ठोस भावना बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय एकता कोई खोखला नारा नहीं बल्कि एक व्यवहारिक ताकत है। उन्होंने ‘इंट्रडिसीप्लिनरी’ दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि आज के समय में अपने विचारों को ठोस और सुस्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कश्मीर समस्या का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि प्रारंभिक समय में दूरदर्शिता से निर्णय लिया जाता, तो वह समस्या गंभीर रूप न लेती।
द्वितीय तकनीकी सत्र
मुख्य वक्ता प्रोफेसर सत्य प्रकाश गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि मीडिया ने सरदार पटेल को वह स्थान नहीं दिया, जिसके वे वास्तविक रूप से अधिकारी थे। उन्होंने कहा कि यदि मीडिया ने अपने दायित्व को ठीक से निभाया होता, तो आज सरदार पटेल के योगदान को बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उन्होंने कहा कि सरदार पटेल का संविधान को ड्राफ्ट कराने में महत्वपूर्ण योगदान रहा।आजादी के आंदोलन में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर अतवीर सिंह ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम, संविधान निर्माण और स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार में सरदार पटेल की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। उन्होंने कहा कि नेहरू और पटेल के विचारों में भिन्नता अवश्य थी, लेकिन दोनों एक-दूसरे का सम्मान करते थे। विशिष्ट अतिथि डॉ. विवेक कुमार पाठक ने सरदार पटेल की राष्ट्र निर्माण में भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि उन्होंने हमेशा मातृभाषा को प्राथमिकता दी और रामराज्य की कल्पना को साकार करने की दिशा में कार्य किया। संविधान के निर्माण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के साथ साथ उसके नियमन में भी योगदान उल्लेखनीय है।
इस संगोष्ठी में 11 राज्यों के 125 प्रतिभागियों ने भाग लिया और 67 शोध पत्र पढ़े गए। 24 विषय विशेषज्ञ के रूप में विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं वरिष्ठ पत्रकारों ने सरदार पटेल जी के व्यक्तिव के विभिन्न आयामों पर व्याख्यान दिए।
कार्यक्रम की संयोजिका डॉक्टर दीपिका वर्मा, लव कुमार सिंह, डॉक्टर बीनम यादव, प्रशासनिक अधिकारी मितेंद्र कुमार गुप्ता, राकेश कुमार , ज्योति वर्मा , उपेश दीक्षित आदि उपस्थित रहे।
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