नित्य संदेश।
कैसा था दंभ तुम्हारा जब किया छिप कर नृशंस प्रहार,
सिंदूर उजाड़े जब बहनों के, किए वार पर वार
क्यों भूल गए तुम, हम क्षमाशील है, चक्षुहीन नहीं
यहाँ हर पूत के लहू में है देश के लिए भाव एक ही।
विध्वंस की तैयारी तुम वर्षों वर्षों तक करते रहे
अपने लोगों को भूखे रख, तुम आतंक ख़रीदते रहे
कभी भेजे वेष बदलकर, कभी छुप-छुपकर आग लगाई,
छल की नीति, पीठ पर वार, कितनी अपनी औक़ात गिराई।
चेतावनी नहीं यह, प्रतिज्ञा है इस देश के वीर सपूतों की
शौर्य हमारा नित संकल्प है, क़सम है हमें बलिदानों की
संवाद हमारा धर्म रहा, हथियारों पर कभी हम इतराये नहीं
पर ललकारो तुम सिंदूर को, फिर हम चुप बैठ सकते नहीं।
सीमाओं को यदि जलाओगे तो शत्रु तुम पछताओगे
हर प्राण का हिसाब तुम्हें देना होगा, नाक रगड़ते आओगे
तुम वार करोगे पीठ के पीछे, हम आँखों में आँखें डालेंगे
झूठ की तुम्हारी बुनियाद को इस बार ध्वस्त कर आयेंगे।
स्मिता नायर
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