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Thursday, May 1, 2025

भारत में बढ़ रहा है कैंसर का खतरा, समय पर जांच और जागरूकता है ज़रूरी: डॉ. राघव केसरी


नित्य संदेश ब्यूरो 
नोएडा। भारत में अब कैंसर केवल बुजुर्गों की बीमारी नहीं रह गई है। बीते कुछ वर्षों में 40 साल से कम उम्र के युवाओं में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं, जो एक चिंताजनक संकेत है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के अनुसार, देश के बड़े महानगरों जैसे दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु में युवाओं के बीच ब्रेस्ट, ब्लड, थायरॉइड और कोलन कैंसर के मामलों में साफ़ बढ़ोतरी देखी गई है। यह बदलाव सिर्फ एक मेडिकल तथ्य नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि अब कैंसर युवाओं को भी निशाना बना रहा है और समय रहते सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी हो गया है।

डॉ. राघव केसरी (सीनियर कंसल्टेंट और हेड ऑफ डिपार्टमेंट, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, यथार्थ अस्पताल, ग्रेटर नोएडा) बताते हैं, "आजकल कम उम्र में ही कैंसर के लक्षण सामने आ रहे हैं, और कई बार मरीज़ जब तक अस्पताल पहुँचते हैं, तब तक बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। अगर समय पर जांच और इलाज हो जाए, तो बहुत से मामलों में बेहतर नतीजे मिल सकते हैं। जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है इस लड़ाई में।" पहले कैंसर की जांच और जागरूकता ज़्यादातर 50 साल से ऊपर के लोगों के लिए मानी जाती थी, लेकिन अब डॉक्टर बता रहे हैं कि 20 और 30 की उम्र में भी कैंसर के गंभीर मामले सामने आ रहे हैं। ब्रेस्ट कैंसर अब युवा महिलाओं में भी देखा जा रहा है, और पुरुषों में कोलन और टेस्टिकुलर कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। इन उम्रों में बीमारी अक्सर ज़्यादा तेज़ी से बढ़ती है और बिना जांच के लंबे समय तक छिपी रह सकती है।

इस बढ़ोतरी के पीछे कई वजहें हो सकती हैं, जैसे बैठे रहने की आदत, जंक फूड, मोटापा, स्मोकिंग, प्रदूषण और मेडिकल जांच में देरी। इसके अलावा जिन परिवारों में पहले से कैंसर रहा है, वहां जेनेटिक कारणों से युवाओं में जोखिम और बढ़ जाता है। एक बड़ी दिक्कत यह है कि युवा लोग अक्सर शुरुआती लक्षणों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं — जैसे अचानक वज़न घटना, थकान, पेट की गड़बड़ी, या किसी गाँठ का बनना। उन्हें लगता है कि उनकी उम्र में कैंसर नहीं हो सकता। इसी सोच की वजह से बीमारी तब पकड़ में आती है जब वो काफी बढ़ चुकी होती है।

भारत में युवाओं में तेजी से बढ़ते कैंसर के मामले अब सिर्फ एक मेडिकल चुनौती नहीं हैं, बल्कि ये एक गहरी सामाजिक और पीढ़ियों से जुड़ा मुद्दा बन चुका है। जिस उम्र में लोग करियर, परिवार और भविष्य की योजनाओं में व्यस्त रहते हैं, उसी समय कैंसर जैसे गंभीर रोग का आ जाना न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी पूरी जिंदगी को झकझोर सकता है। आज ज़रूरत इस बात की है कि हम लक्षणों को नज़रअंदाज़ करने की बजाय उन्हें पहचानें, समय पर जांच कराएं और ज़िम्मेदारी के साथ अपना स्वास्थ्य प्राथमिकता पर रखें। थकान, अचानक वज़न घटना, कोई गांठ या शारीरिक बदलाव — ये सब संकेत हो सकते हैं जिन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए।

हर युवा को यह समझने की ज़रूरत है कि कैंसर किसी एक उम्र या जीवनशैली का रोग नहीं है। लेकिन अगर जागरूकता हो, और सही समय पर कदम उठाया जाए, तो इस बीमारी से न केवल लड़ा जा सकता है, बल्कि ज़िंदगी को फिर से सामान्य और पूर्ण रूप से जिया जा सकता है — वो भी उस समय जब जीवन सबसे अधिक सक्रिय और संभावनाओं से भरा होता है।

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