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Friday, March 14, 2025

क्या कारी शफीक और डा. सालेकिन सियासत के बीच घिर गए है?

 


नित्य संदेश। ऐसा लग रहा था कि शहर काजी को लेकर बना विवाद सुलझ गया है, लेकिन ये तनाव अभी और बढ़ेगा। अवाम की गुटबाजी अब खुलकर सामने आने लगी है, एक पक्ष कारी शफीक के साथ खड़ा है, जबकि दूसरा प्रोफेसर डा. सालेकिन के साथ दिखाई दे रहा है। शुक्रवार को जुमा की नमाज के दौरान शाही जामा मस्जिद में हालात अन्य दिनों के मुकाबले अलग थे। फिलहाल ये मानकर चलिए कि मेरठ शहर में दो काजी है।

जुमा की नमाज से चंद मिनट पहले शहर काजी कारी शफीकुर्रमान ने एक वीडियो मीडिया के पास जारी किया। उस वीडियो के खास-खास अल्फाज मैं यहां लिख रहा हूं। उन्होंने अपनी बात का आगाज होली और जुमा की नमाज से किया। मिल्ल्त के प्रति गहरा गम प्रकट करते हुए कारी शफीकुर्रमान कह रहे हैं कि प्रशासन ने शांति बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों पर कार्रवाई की है, हालात ने बिगड़ जाए इसलिए मैं जामा मस्जिद नहीं आ रहा, क्योंकि दूसरा पक्ष फसाद चाहता है। डा. सालेकिन को अपना बच्चा बताते हुए कहा कि सालेकिन सियासत के बीच घिर गए हैं, एक तरह से उसको बंधक बना लिया गया है, सिर्फ अपने फायदे के लिए और उसको बिरादरीवाद में बांट दिया है।

कारी शफीक कह रहे हैं कि मैंने जामा मस्जिद के लिए कुर्बानी दी है, जब मैंने बयान शुरू किया, शबीना शुरू किया, तभी से जामा मस्जिद आबाद हुई। मुझे जामा मस्जिद से कौन रोकेगा, मस्जिद किसी के बाप की मिल्कियत नहीं है, मुसलमानों की है, लिहाजा हर मुस्लमान को मस्जिद में जाने का हक है। हालात को देखते हुए मैं मस्जिद नहीं जा रहा, आइंदा जाऊंगा, क्योंकि जामा मस्जिद में मेरे चाहनों वालों की तादाद बहुत ज्यादा है। और जो लोग डा. सालेकिन के साथ है, वे माहौल खराब करना चाहते हैं।

उन्होंने अवाम से अपील की है कि जामा मस्जिद को टारगेट मत बनाओ, मामला मस्जिद से बाहर का है, अमनो अमान को कायम रखिए, और आपस में दिल मेले मत करिए। मुझे कोई ख्वाहिश नहीं है शहर काजी बनने की है, पूर्व शहर काजी साजिद्दीन को मैंने ही पगड़ी बांधी थी। 1990 में मैंने कुर्बानी दी है, फिर से दे दूंगा।

शहर काजी को लेकर बना तनाव कैसे शांत होगा, अवाम किसको शहर काजी माने या दोनों पर ही अपनी रजामंदी दे दे। क्या वाकई में शहर काजी को लेकर सियासत हो रही है? क्या शाही जामा मस्जिद और शाही ईदगाह को टारगेट किया जा रहा है, और वे कौन लोग है जो निशाना साध रहे हैं।

मैंने दो दिन पहले अपने लेख में शंका व्यक्त की थी कि एक तरफ सपा और दूसरी तरफ बसपा के सियासतमंद लोग है, क्या मेरा शक सही है? क्या कारी शफीक और डा. सालेकिन सियासत के बीच घिर गए हैं।

अपनी राय जरूर दे…


प्रस्तुति

लियाकत मंंसूरी

संपादक

 

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