नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य के आवास पर कथा व्यास डा. पूनम लखनपाल द्वारा सामवेद के छठे दिवस की कथा हुई। हे अग्नि देव! हमें गति प्रदान कीजिए, हम आपका आह्वान करते हैं। आप हमें धन, सम्पदा, द्रव्य व ओज प्रदान कीजिए।
कथा व्यास ने बताया कि याचक बुद्धिबल का भरपूर प्रयोग करता हुआ याचना करता है। बाणासुर के वध हेतु शिव का ओज पार्वती, अग्नि, गङ्गा, छः कृतिकाओं से होता हुआ कार्तिकेय के जन्म का सूत्र बना। दक्षिण में कार्तिकेय मुरुगन नाम से जाने जाते हैं। अग्नि शाश्वत रहे इस हेतु हम श्रेष्ठ मन्त्रों से ऋषि निर्णीत विधि से अग्नि की उपासना करें। वृत्र का वध करने वालों में श्रेष्ठ अग्नि का आह्वान करते हुए हम यज्ञ करें (अग्निहोत्र कर्म)। आप (हे अग्नि!) हमारे यज्ञ के चार ऋत्विकों ब्रह्मा, अध्वर्यु, होता व उद्गाता में से एक होता हैं। हम सम बुद्धि एकत्र हो समवेत स्वर से देवाताओं की उपासना करते हैं। अपां नपात। अग्नि इसलिए नप्तृ कहलाते हैं, क्योंकि वह पतन से बचाते हैं।
वह अग्नि ही (गुप्त उष्मा के रूप में) बादलों में जल को बाँध कर रखता है। हमारी जठराग्नि में भी अग्नि का गुप्त ऊष्मा रूप होने से ही हमारे खाद्य पदार्थों को तरल व रस में परिवर्तित कर हमारे जीवन का रक्षण करता है। हे अग्निदेव आप हमारे स्तुत्य भावों को स्वीकारें और अपनी कृपा-वर्षा कर व उसका सम्भार करें। हे अग्नि! हमारे जीवन में समस्त स्वरूपों में विराजें व हमारा रक्षण करें। आपका हम सपर्या स्वागत करें। इसीलिए वेलकम वर्म ही किया जाता है। स्वागत गर्मजोशी से किया जाता है। ॐ अग्न आ याहि वीतये उद्घोष के साथ आज छठे दिन की सामवेद की कथा पूर्ण हुई। मंगलवार को सातवें दिन की कथा से सामवेद की अग्निकथा की पूर्णाहुति होगी।
No comments:
Post a Comment