नित्य संदेश ब्यूरो
गाजियाबाद। आयोडीन युक्त नमक के सेवन का मतलब केवल सरकार द्वारा अनिवार्य आयोडीन की मात्रा अनुपालन भर नहीं है, बल्कि यह एक आवश्यक पोषक तत्व का विश्वसनीय स्रोत है, जो हमारी रसोई में मौजूद रहता है। यह साधारण सी चीज़ हमारे खाने का स्वाद तो बढ़ाती ही है साथ ही कई तरह से हमारी सेहत में भी योगदान देती है।
नमक बहुत अधिक इस्तेमाल होने वाला उत्पाद है, इसलिए यह यूनिवर्सल सॉल्ट आयोडाइज़ेशन कार्यक्रम के ज़रिए आयोडीन मिलाने का सबसे आम माध्यम बन गया और यह आयोडीन की कमी से पैदा होने वाले विकारों को रोकने में मददगार रहा है। टाटा सॉल्ट को 1983 में लॉन्च किया गया था और इसकी भारत में आयोडीन की कमी से होने वाली विकारों (आईडीडी) के खिलाफ संघर्ष में प्रमुख भूमिका रही है। आईडीडी सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी बड़ी चुनौती थी जिससे कभी लाखों लोग प्रभावित थे। आयोडीन युक्त नमक के राष्ट्रीय स्तर के पहले ब्रांड तौर पर, टाटा सॉल्ट ने गुणवत्ता का मानक तय किया और देश भर में आयोडीन युक्त नमक उपलब्ध कराया। पिछले कुछ सालों में, यह भरोसे तथा सेहत का प्रतीक बन गया है और लाखों भारतीय परिवारों की रोज़मर्रा के जीवन का ज़रूरी हिस्सा बन गया है। टाटा साल्ट यह सुनिश्चित करता है कि आयोडीन युक्त नमक हर घर तक पहुंचे और इस तरह यह देश की पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ब्रांड की निरंतर कोशिश, नमक के एक-एक दाने के ज़रिये मज़बूत भारत बनाने में योगदान दे रही है।
इंडिया आयोडीन सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, लगभग 76.3प्रतिशत घरों में पर्याप्त मात्रा वाले आयोडीन युक्त नमक इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें कम से कम 15 पीपीपीएम आयोडीन होता है। हालांकि, सर्वेक्षण में जागरूकता की कमी भी सामने आई, क्योंकि सिर्फ 22.4 प्रतिशत लोगों को ही आयोडीन युक्त नमक खाने के फायदों के बारे में सही जानकारी थी और 61.4 प्रतिशत लोग इस बात से वाकिफ थे कि उचित मात्रा में आयोडीन पोषण से घेंघा रोग नहीं होता है। इसलिए, यह समझना बेहद ज़रूरी है कि आयोडीन की हमारे दैनिक स्वास्थ्य में क्या भूमिका है, और इसके महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करना भी आवश्यक है।
आयोडीन का सेवन इसकी कमी से पैदा होने वाले विकारों (आईडीडी) को रोकने में मदद करता है रू आयोडीन युक्त नमक के सेवन का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह आयोडीन की कमी से पैदा होने वाले विकारों (आईडीडी) को रोकने में मदद करता है और मानसिक विकास में सहायता प्रदान करता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और एनआईएन के रेकोमेंडेड डाइटरी अलॉएंस (अनुशंसित आहार मात्रा) के अनुसार, किशोरों और वयस्कों के लिए 140 माइक्रोग्राम प्रति दिन, 1-12 साल के बच्चों के लिए 90-100 माइक्रोग्राम और गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए 220-280 माइक्रोग्राम आयोडीन का सेवन करना उपयुक्त है।
स्वस्थ गर्भावस्था में मददगार है: आईडीडी की कमी के सबसे खतरनाक नतीज़े गर्भावस्था और बालपन में होते हैं, जिससे दिमाग और सोचने-समझने की क्षमता का विकास ठीक तरह नहीं हो पाता है। आयोडीन का उचित स्तर बनाए रखना ज़रूरी है क्योंकि आयोडीन की कमी से गर्भपात और हाइपोथायरायडिज्म हो सकता है। राष्ट्रीय दिशानिर्देश के अनुसार गर्भावस्था के दौरान आयोडीन का ज़्यादा सेवन किया जाना चाहिए, जो जीवन के इस महत्वपूर्ण चरण में इसके महत्व को साफ तौर पर बताता है।
बच्चों में मस्तिष्क के विकास को बढ़ावा देता है: आयोडीन बच्चों के मस्तिष्क के स्वस्थ विकास के लिए बेहद ज़रूरी है, खास तौर पर भ्रूण के विकास और बचपन के दौरान। शरीर को पहले 1000 दिन तक दौरान थायराइड हार्माेन बनाने के लिए आयोडीन की ज़रूरत होती है। इस 1,000 दिन की अवधि के दायरे में गर्भधारण से लेकर बच्चे के दूसरा जन्मदिन तक आता है। नए अनुसंधान से पता चलता है कि यह आवश्यक विकास की अवधि पांच साल की हो सकती है। यह थायराइड हार्माेन दिमाग की कोशिकाओं के बनने, नर्व कनेक्शन (तंत्रिका कोशिकाओं के जुड़ाव) के विकास और नर्व फाइबर (तंत्रिका तंतु) की सुरक्षात्मक परत के लिए ज़रूरी है। इन ज़रूरी शुरुआती चरणों में आयोडीन की कमी दिमाग के विकास और सोचने-समझने की क्षमताओं पर काफी असर डाल सकती है, जिससे सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है।
समग्र स्वास्थ्य में योगदान देता है: सभी जानते हैं कि आयोडीन दिमाग की सेहत और थायराइड मेटाबॉलिज्म में उल्लेखनीय भूमिका निभाता है, जिसका समग्र स्वास्थ्य में योगदान होता है। जब आयोडीन का सेवन कम होता है, तो थायराइड हार्माेन का उत्पादन कम हो जाता है, जिससे मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है। पर्याप्त आयोडीन का सेवन सोचने-समझने और थायराइड मेटाबॉलिज्म के कामों को बेहतर बनाने में मदद करता है, जिससे शरीर में हर तरह की तंदुरुस्ती बनी रहती है।
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