नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। किसान नेता एवं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की जयंती की पूर्व संध्या पर हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी साहित्यिक–सांस्कृतिक परिषद, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के तत्वावधान में एक राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का भव्य आयोजन किया गया।
कवि सम्मेलन में देश के विभिन्न हिस्सों से आए प्रतिष्ठित कवियों ने राष्ट्रभक्ति, सामाजिक सरोकार, मानवीय संवेदनाओं और समकालीन यथार्थ से जुड़ी रचनाओं का प्रभावशाली पाठ किया। कविताओं ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया और बार-बार तालियों की गूंज से सभागार गूंजता रहा। इस अवसर पर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला, पूर्व प्रतिकुलपति प्रोफेसर एम. के. गुप्ता, प्रोफेसर वीरपाल सिंह, प्रोफेसर कृष्णकांत शर्मा, प्रोफेसर नीलू जैन गुप्ता सहित अनेक गणमान्य शिक्षक, साहित्यकार एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
आओ इसको शीश नवाएं
मुट्ठी कसकर शपथ उठाएं
तीन रंग का ईश्वर है ये
हर पल इसे निहारेंगे
अपने पूज्य तिरंगे की हम
आरती सदा उतारेंगे
भारत माता का हरगिज सम्मान नहीं खोने देंगे
अपने पूज्य तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे
अभय सिंह निर्भीक
अम्बेडकर नगर
नई सदी परमाणु बम के गहने पहने बैठी है .
घायल धरती मां अम्बर से पीड़ा कहने बैठी है .
मुझको ये पूरी दुनिया लाचार दिखाई देती है .
चीर हरण के चौसर का दरबार दिखाई देती है
मेरी कलम कामना गाती है जग की खुश हाली की .
लेकिन दिल में आग भरी है दुनिया की बदहाली की .
--- डॉ हरिओम पंवार
ना केवल मंदिर के निर्माण
ना केवल पूजा विधि विधान
ना केवल भक्तों के भगवान
ये होगा उन सब का सम्मान
योग में देह दे गये दान
शिलामें समा गये जो प्राण
ये सूचित हो इतिहासों को
बिछाकर कर अपनी लाशों को
समय की कड़ी कसौटी पर खरी उतरी जो निष्ठा है
राम के नाम लुटा गये प्राण ये उनकी प्राण प्रतिष्ठा है
सुदीप भोला
भारत माता का हरगिज सम्मान नहीं खोने देंगे
अपने पूज्य तिरंगे का अपमान नहीं होने देंगे
अभय निर्भीक, लखनऊ
सुनता हूँ वे लोग बड़े हैं जो गीता और वेद पढ़े हैं,
हमने पूरी रामायण में शबरी के दो बेर पढ़े हैं,
जीवन में उनका रस घोल,
निकले हैं रचने भूगोल,
फूल लिखेंगे माथे पर अंगारों के,
हम हैं राही प्यार भरे बाज़ारों के।
प्रियांशु गजेन्द्र
कल थे असफल मगर अब सफल हो गये
अपना दल दल बदल दल बदल हो गये
इस तरह हो गई उनपे भगवत्कृपा
बेहया फूल थे अब कमल हो गये
मेरा अरमान रह जाए .
वतन की शान रह जाए .
ज़माने में सुमन गंगाजली ,
पहचान रह जाए .
तिरंगे का निशा थोड़ा
मुझे भी तो मयस्सर हो.
मेरे होto पे जिंदाबाद .
हिन्दुस्तान रह जाए .
-सुमनेश सुमन
किसक़दर साफ़ है आज़ादी की रोशन तस्वीर
जगमगायेगी भला क्यों नहीं अपनी तक़दीर
हम अहिंसा के तरफ़दार मोहब्बत के असीर
आत्मा अपनी है बेदार तो ज़िंदा है ज़मीर
कल जो ग़ैरों की थी ओरों की थी सारी दुनिया
हमको है गर्व के है आज हमारी दुनिया ।
मुमताज़ नसीम
सारे हल मिल जाते चाहे जैसी भी हो उलझन
मिले यार तो लगे लौट के आया जैसे बचपन
क्या बोले की सब के सब मक्कार बहुत थे यार
खूब सताते फिर कहते चल चिल करते हैं यार
✍️ डॉ अनुज त्यागी
सभी को इस ज़माने में सभी चीज़ें नहीं मिलतीं,
किसी बाजार में अनमोल तहजी़बें में नहीं मिलतीं,
जहां की हर अदालत से बड़ी कोई अदालत है,
वहां बस फैसले होते हैं तारीखें नहीं मिलतीं।
रवीन्द्र रवि, ग्वालियर
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