डॉक्टर अनिल नौसरान
नित्य संदेश। भारत में चिकित्सा की अनेक पद्धतियाँ—एलोपैथी, आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी आदि—सरकारी मान्यता प्राप्त हैं और प्रत्येक की अपनी विशिष्ट दर्शनशास्त्र, उपचार प्रणाली एवं वैज्ञानिक आधार है। इन पद्धतियों की विविधता हमारी शक्ति है, किंतु डिग्री नामकरण में समानता ने आज गंभीर भ्रम और अव्यवस्था उत्पन्न कर दी है।
अंडरग्रेजुएट स्तर पर स्पष्टता है।
एलोपैथी में **MBBS**,
आयुर्वेद में **BAMS**,
होम्योपैथी में **BHMS**,
और यूनानी में **BUMS** जैसी डिग्रियाँ यह साफ दर्शाती हैं कि चिकित्सक किस पद्धति से प्रशिक्षित है।
परंतु पोस्टग्रेजुएशन के स्तर पर गंभीर विसंगति सामने आती है। एलोपैथी में जहाँ **MD (Doctor of Medicine)** और **MS (Master of Surgery)** डिग्रियाँ दी जाती हैं, वहीं अन्य पद्धतियों में भी समान नाम वाली MD / MS डिग्रियाँ प्रदान की जा रही हैं, जबकि उनकी चिकित्सा प्रणाली, प्रशिक्षण और उपचार दर्शन पूरी तरह भिन्न हैं।
यह समान नामकरण आम जनता को भ्रमित करता है। मरीज स्वाभाविक रूप से यह मान लेता है कि “MD” या “MS” उपाधि धारण करने वाला चिकित्सक एलोपैथी में प्रशिक्षित है, जो कई बार सत्य नहीं होता। यह स्थिति न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि मरीज की सुरक्षा और उसके अधिकारों का भी उल्लंघन है।
एलोपैथी आधुनिक विज्ञान, प्रमाण-आधारित चिकित्सा, आधुनिक शल्य चिकित्सा और फार्माकोलॉजी पर आधारित है, जबकि आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी की अपनी स्वतंत्र और विशिष्ट चिकित्सा अवधारणाएँ हैं। अलग-अलग विज्ञानों को एक ही डिग्री नाम देना बौद्धिक और व्यावहारिक दोनों ही स्तरों पर अनुचित है।
समाधान क्या है?
पोस्टग्रेजुएट डिग्रियों का नाम संबंधित पद्धति के अनुरूप होना चाहिए, जैस
**आयुर्वेद के लिए**
* MAM – मास्टर इन आयुर्वेदिक मेडिसिन
* MAS – मास्टर इन आयुर्वेदिक सर्जरी
**यूनानी के लिए**
* MUM / MUD – मास्टर इन यूनानी मेडिसिन
* MUS – मास्टर इन यूनानी सर्जरी
**होम्योपैथी के लिए**
* MHM – मास्टर इन होम्योपैथिक मेडिसिन
* MHS – मास्टर इन होम्योपैथिक सर्जरी
इससे जनता को स्पष्ट जानकारी मिलेगी, चिकित्सकीय पारदर्शिता बढ़ेगी और प्रत्येक पद्धति की स्वतंत्र पहचान सुरक्षित रहेगी।
*मिक्सोपैथी पर रोक जरूरी
पद्धतियों का अनियंत्रित मिश्रण (मिक्सोपैथी) न तो एकीकरण है और न ही प्रगति। यह स्वास्थ्य प्रणाली को कमजोर करता है और मरीजों के लिए खतरा उत्पन्न करता है। प्रत्येक पद्धति को स्वतंत्र रूप से, सम्मान के साथ विकसित होने दिया जाना चाहिए।
भारत सरकार और संबंधित नियामक संस्थानों से आग्रह है कि वे इस गंभीर विषय पर संज्ञान लें और पोस्टग्रेजुएट चिकित्सा डिग्रियों के नामकरण में आवश्यक सुधार करें। यह किसी पद्धति के विरुद्ध नहीं, बल्कि मरीजों के हित और स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती के लिए आवश्यक कदम है।
स्पष्ट पहचान = सुरक्षित चिकित्सा
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