तरुण आहुजा
नित्य संदेश, मेरठ। महिलाओं की सुरक्षा और न्याय के बड़े-बड़े दावों के बीच एक बार फिर पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। गंगानगर थाना क्षेत्र में दुष्कर्म के आरोपित को 11 दिन तक पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकी, लेकिन जैसे ही पीड़िता ने थाने में ज़हर खाकर आत्महत्या का प्रयास किया, उसी आरोपित को मात्र 11 घंटे में पकड़ लिया गया।
लोगों का सवाल है—
> क्या आरोपी पुलिस की पहुंच से सच में दूर था या पुलिस की नजरों से दूर रखा गया था?
पीड़िताओं की दर्दनाक कहानी: तीन मामलों ने हिलाया मेरठ:
(1) गंगानगर होटल मे दुष्कर्म केस:
एक युवती के साथ हुए बलात्कार के मामले में आरोपी लगातार फरार रहा। आरोप है कि पुलिस ने गिरफ्तारी में किसी प्रकार की तत्परता नहीं दिखाई।
(2) बक्सर मामला
जब आरोपित को गिरफ्तार नहीं किया गया तो युवती ने थाने में ही ज़हर खा लिया। घटना के तुरंत बाद पुलिस मशीनरी सक्रिय हुई और आरोपी 11 घंटे में सलाखों के पीछे था।
लोगों में यह चर्चा है कि—
> क्या पीड़ित को मरने जैसा कदम उठाना पड़े तभी न्याय की दिशा में पहिए घूमेंगे?
(3) शास्त्रीनगर पीड़िता की आप बीती:
शास्त्रीनगर की एक युवती ने बताया कि पड़ोस में रहने वाले युवक ने शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए, गर्भ ठहरने पर गर्भपात कराया और जब युवती ने केस दर्ज कराया, तो अब मुकदमा वापस लेने का दबाव और जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही हैं।
महिला सुरक्षा के दावों पर सवाल :
जहाँ योगी सरकार महिला सुरक्षा के नाम पर सख़्त कानून, महिला हेल्पलाइन और मिशन शक्ति जैसी योजनाओं की बात करती है, वहीं ज़मीनी हकीकत इसके विपरीत नज़र आ रही है।
लोगों ने आरोप लगाया है कि—
पुलिस चाहे तो चप्पल चोरी करने वाला भी बच नहीं सकता:
लेकिन दुष्कर्म के मामलों में देर क्यों? क्या कार्रवाई दबाव में होती है या संवेदनशील मामलों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत नहीं समझी जाती?
अब सवाल ये हैं—
महिलाओं को क्या न्याय तभी मिलेगा जब वे थानों में ज़हर खाकर विरोध जताएँगी?
क्या पुलिस की कार्रवाई आरोपी के प्रभाव, पहुंच या आदेशों के आधार पर होती है? कब वास्तविक रूप से महिलाओं को सुरक्षा का अहसास मिल पाएगा?
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