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Sunday, October 12, 2025

बारिश में गिरा, लेकिन हार नहीं मानी



नित्य संदेश। 1 सितंबर 2025 की सुबह लगभग 7 बजे की बात है। लगातार बारिश हो रही थी। मैं अपनी 50 किलोमीटर की साइकिलिंग पूरी करके मेरठ–पौड़ी हाईवे से लौट रहा था। भीगती हुई सड़कों पर साइकिल चलाना उस दिन किसी स्वर्गिक अनुभव से कम नहीं था — ठंडी हवा, ताजगी भरी बारिश और आत्मा को छूने वाला सुकून।

जैसे ही मैं मेरठ छावनी के इलाके में पहुँचा, देखा कि रास्ते पर बैरिकेडिंग की गई है और मार्ग डायवर्ट किया गया है। भीड़ देखकर मैंने सोचा कि डायवर्ट रास्ते पर क्यों जाऊँ, सीधा रास्ता ही ले लेता हूँ। उसी जगह एक बड़ा लोहे का बोर्ड गिरा हुआ था। मैंने सोचा, इसके बगल से साइकिल निकाल लूँ। बारिश के कारण सड़क फिसलन भरी थी और साइकिल की रफ्तार तेज थी। मैंने केवल पिछला ब्रेक लगाया — और पलक झपकते ही साइकिल फिसल गई। पता ही नहीं चला कि मैं कैसे सड़क पर पीठ के बल जा गिरा। गिरते समय मेरा पैर लोहे के बोर्ड से टकराया और जूते फट गए। अंगूठे से खून बहने लगा, घुटना भी छिल गया। सड़क पर कुछ क्षण लेटा रहा। बारिश की बूंदें चेहरे पर गिर रही थीं, और मैं सिर्फ यह सोच रहा था — “कहीं हाथ-पैर टूटे तो नहीं?” धीरे से अपने हाथ-पैर चलाकर देखा, सब सही था। मैंने वहीं ईश्वर को धन्यवाद दिया कि बड़ी दुर्घटना से बच गया। फिर उठकर सबसे पहले वही गिरा हुआ लोहे का बोर्ड खड़ा कर दिया, ताकि कोई और मेरी तरह घायल न हो। पर आश्चर्य यह हुआ कि इतने लोगों के बीच से कोई भी मेरी मदद के लिए नहीं रुका — सब बस देख कर निकल गए।
मैंने खुद अपनी साइकिल उठाई और घर की ओर चलना शुरू किया। लेकिन कुछ ही दूर जाने पर अचानक शरीर कमजोर पड़ने लगा। दर्द के साथ-साथ बहुत तेज प्यास लगी — इतनी कि लगा अब शायद पानी के बिना बच पाना मुश्किल है। रास्ते में बारिश का पानी जमा था। मन ने कहा, “यही पी लो।” पर भीतर से आवाज आई — “नहीं, रुकना मत। चलते रहो। मंज़िल बस थोड़ी दूर है।” मैंने वही किया जो साइकिलिंग ने मुझे सिखाया है —धीरे चलो, पर चलते रहो। धीरे-धीरे पैडल मारते हुए कमिश्नरी चौराहे तक पहुँचा। वहाँ पहुँचते ही जैसे ऊर्जा की लहर दौड़ गई। फिर उसी जोश में साइकिल चलाते हुए घर पहुँचा।

सीख:
जीवन भी साइकिलिंग की तरह है —
कभी रास्ता फिसलन भरा होता है, कभी बैरिकेडिंग लग जाती है, कभी गिरना भी पड़ता है।
पर अगर हम रुकते नहीं, चलते रहते हैं, तो हर गिरना हमें और मजबूत बनाता है।

गिरना हार नहीं, सीख है।
और जो सीखता है, वही आगे बढ़ता है।

 डॉ. अनिल नौसरान — साइक्लिस्ट, पैथोलॉजिस्ट, चिकित्सक, संस्थापक: साइक्लोमेड फिट इंडिया 

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