नित्य संदेश। आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में लोग अक्सर बाहर से बना हुआ खाना पसंद करते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हम वास्तव में क्या खा रहे हैं?
बाहर के खाने की कड़वी सच्चाई
बिना प्यार और भावनाओं।के पकाया हुआ
* अक्सर **गंदा और अस्वच्छ**
* **मिलावटी सामग्री** से तैयार
* **रसायन और प्रिज़र्वेटिव्स** से भरा
* **कृत्रिम दूध और उसके उत्पादों** का प्रयोग
* कई दिनों तक **फ्रिज में रखा हुआ खाना**
* **अत्यधिक नमक, चर्बी और लत लगाने वाले स्वाद**
* देर रात तक आसानी से उपलब्ध, जिससे **गलत खानपान की आदतें**
* “कॉर्पोरेट खाने की जगहें” जहाँ ध्यान सिर्फ **लाभ पर होता है, स्वास्थ्य पर नहीं**
ऐसा खाना धीरे-धीरे शरीर को ज़हर की तरह नुकसान पहुँचाता है और **मोटापा, डायबिटीज़, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर** जैसी बीमारियों को जन्म देता है, यहाँ तक कि **अकस्मात मृत्यु** का कारण भी बन सकता है।
घर के बने खाने की ताक़त
दूसरी ओर, घर पर बना खाना देता है:
* **ताज़गी और स्वच्छता**
* **प्यार और भावनाएँ**, जो असली पोषण देती हैं
* नमक, तेल और मसालों का **संतुलित प्रयोग**
* बिना किसी **प्रिज़र्वेटिव्स और कृत्रिम चीज़ों** के
* आपके और आपके परिवार के लिए **गुणवत्ता की गारंटी**
यदि कभी बाहर खाना पड़े, तो कोशिश करें कि **छोटे स्थानीय ढाबों/होटलों** से खाएँ, जहाँ रोज़ ताज़ा खाना बनता है और लंबे समय तक संरक्षित करने की गुंजाइश नहीं होती।
*ज़रूरी जीवनशैली परिवर्तन**
* पैक्ड या कॉर्पोरेट फूड के बजाय **घर का खाना** चुनें
* देर रात खाना खाने से बचें
* ताज़ा, मौसमी और संतुलित भोजन करें
* अपने भोजन के चुनाव से ही अपने शरीर का सम्मान करें
आज ही अपनी जीवनशैली बदलें – नहीं तो कल आपको पुरानी बीमारियों और अकस्मात मृत्यु के लिए तैयार रहना होगा।
डॉ. अनिल नौसरान
संस्थापक
साइक्लोमेड फिट इंडिया
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