नित्य संदेश। जिस दिन मेरा चालान गाड़ी पर हिंदी की नंबर प्लेट को लेकर कटा था, उस दिन प्रण किया था कि हिंदी के लिए कुछ करूंगा।
हिंदी साहित्य अकादमी का गठन किया, पूरे देश में इसका विस्तार किया। आज देश भर में लगभग 25 प्रांतीय संभाग, दर्जनों इकाईयां हैं जो हिंदी की वाचिक परंपरा को शक्ति देने का कार्य कर रही हैं। हिंदी को लेकर एक भय था कि कहीं पाश्चात्य की दाऊद में हम, हमारी हिंदी को खो तो नहीं देंगे। किंतु राष्ट्रहितों में कार्य कर रही सरकार ने हिंदी को संबल दिया। आज AI ने ऐसे टूल्स, एप्लीकेशन समक्ष रख दी हैं कि इधर आप अपनी भाषा बोलें, उधर तत्काल अनुवाद होकर दूसरी भाषा में सुनाई दे। इससे भाषा स्वयं एक विषय न होकर माध्यम हुई और भाषा माध्यम ही है। भाषा तो सहायक है भावों के आदान प्रदान में, एक दूसरे को समझने में। आज हिंदी का हर सैनिक अपनी विजय पर प्रसन्न है। आज वह स्वतंत्र है अपनी भाषा में ज्ञानार्जन करने के लिए।
मैंने लिखा है
डॉक्टर की, वकील की, ये छात्र भाषा हो
स्वाभिमान, विश्वास की ये पात्र भाषा हो
हिंदी हमारा मान ओ अभिमान है हिन्दी
मातृ भाषा ही नहीं एकमात्र भाषा हो
प्रस्तुति
सौरभ जैन सुमन
(राष्ट्रीय अध्यक्ष, हिंदी साहित्य अकादमी/क्रांति कवि)
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