नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की तपप्रधान दूसरे दिन की
कथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि पंचतपा का क्या अर्थ है? पहला
भूख (उपवास करना), दूसरा सूर्य का ताप, तीसरा पहाड़ी पर चारों तरफ आग जलाना, चौथा बर्तन में
मिट्टी करके सर पर रख लेना, पांचवा लोगों के अपशब्द कहने पर
सहन कर लेना अर्थात मान अपमान सहन करना।
काम,
क्रोध, लोभ, मद, मोह आदि तापों को जो झेल ले वही तपस्वी है। तपस्या कोई तीर्थाटन, व्रत या माला जपना नहीं है, तपस्या अर्थात ईश्वरीय
कार्यों में विघ्न पैदा ना करना। तपस्या सरल है, कठिन तो
ईश्वरीय विधान के विपरीत चलना है। अत्रि व अनुसूया के समान कोई तपस्वी नहीं था। ब्रह्मा,
विष्णु और महेश अनुसूया की परीक्षा लेने पहुंचे व उनके पुत्र रुप
में जन्म लिया। जो सहज है वही तपस्या है। सहज मार्ग ही श्रेष्ठ है। देवहूति द्वारा
कपिलमुनि को जन्म देना, उनका देवहूति को सांख्ययोग का उपदेश।
हिरण्यगर्भ से सृष्टि का विस्तार, ध्रुव की कथा, प्रचेताओं को नारदजी द्वारा क्रियायोग का उपदेश, पृथु
का जन्म, पुरंजन पुरंजनी की कथा, आग्नीध्र
की कथा, ऋषभदेव की कथा आदि का वर्णन हुआ। शुक्रवार को
नर नारायण, अजामिल, दधीचि,
कश्यप, प्रहलाद आदि की तपस्या का वर्णन होगा।
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