नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की तपप्रधान कथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि तप का क्या अर्थ है? व्रत में और तप में क्या अंतर है? तीर्थाटन और तप में क्या भेद है? तप पतन से बचाने की एक प्रक्रिया है। तप व पत ये दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं।
रावण को मारने के लिए राम नें तप किया। कंस को मारने के लिए कृष्ण नें तप किया। तप जब कष्ट दे, असह्य हो तो वह ताप है और जब वो सहने योग्य प्रक्रिया हो तब वह तप है। द्वन्द्व सहन करना ही तप है। सृष्टि की रचना के लिए नारायण द्वारा ब्रह्माजी को तप करने का उपदेश देना, सम्पूर्ण सृष्टि तप के बल पर ही विद्यमान है। हिरण्यकशिपु के तप का वृत्तान्त वर्णन हुआ। हिरण्याक्ष का पृथ्वी को हरण कर लेना। सूकर अवतार द्वारा पृथ्वी को वापस लाना व हिरण्याक्ष का वध करना। जब जगत कल्याण के लिए कार्य किया जाए तो वह तप हो जाता है और जब अपने लिए कोई कार्य किया जाए तो वह पात हो जाता है। गुरुवार को कर्दम, देवहूति, कपिल, ध्रुव, प्रचेता व ऋषभदेव की कथाए होंगी।
No comments:
Post a Comment