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Thursday, June 26, 2025

आज के दौर में हमें साहित्य के मानक बदलने होंगे: डॉ. तकी आबिदी

 


-उर्दू विभाग ने "उर्दू में बाल साहित्य: परंपरा और मुद्दे" विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया

नित्य संदेश ब्यूरो

मेरठ इकबाल की सबसे अच्छी प्रार्थना "बच्चों की कविता" है। इकबाल ने 1906 में तेरह कविताएँ लिखीं, जो बच्चों की नैतिकता और चरित्र को लेकर लिखी गईं। हाली ने भी बच्चों पर चौदह कविताएँ लिखीं। बाल साहित्य पर एम.फिल और पीएचडी की जा रही हैं, लेकिन उनके साहित्य पर कोई सेमिनार, किताबें या लेख आदि नहीं लिखे जाते हैं। आज के दौर में हमें साहित्य के मानक बदलने होंगे। यह शब्द थे प्रख्यात आलोचक डॉ. तकी आबिदी [कनाडा] के, जो आयुसा एवं उर्दू विभाग द्वारा आयोजित उर्दू में बाल साहित्य: परंपरा एवं मुद्देह्व विषय पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू पर रोना रोने के बजाय हमें साहित्य पर काम करना होगा। हमें उर्दू को 21वीं सदी की तकनीक से जोड़ना होगा।


कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम की रही। मुख्य अतिथि 'गुलबूटे' के संपादक फारूक सैयद थे, तथा विशिष्ट अतिथियों में प्रसिद्ध कहानीकार डॉ. रौनक जमाल (दुर्ग), डॉ. अता आबिदी (बिहार) और सिराज अजीम (दिल्ली) शामिल थे। कार्यक्रम में लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन विशेष वक्ता के रूप में उपस्थित थीं, जबकि डॉ. शादाब अलीम ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। 


स्वागत भाषण मुहम्मद नदीम ने, धन्यवाद ज्ञापन सरताज जहां ने और संचालन शोध छात्र शाहे ज़मन ने किया। इस अवसर पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि आज भी बहुत से लोग बच्चों की कहानियां लिख रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि आज का कार्यक्रम बाल साहित्य में चार चांद लगाएगा। आज के बच्चों को फिल्मों और टीवी की कहानियां पसंद नहीं आती, जबकि उन्हें साहित्यिक कहानियां देखना पसंद है। आज बाल साहित्य पर बहुत कम लिखा जा रहा है, हालांकि यह बहुत महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस विषय पर बहुत शोध हो रहा है, लेकिन मेरे हिसाब से अभी बहुत शोध होना बाकी है।


इस अवसर पर डॉ. शादाब अलीम ने अपने शोधपत्र में कहा कि इस्माइल मेरठी ने बच्चों के साहित्य के लिए बहुत ही मानक और नायाब काम किया है। उन्होंने अपनी कविताओं में बच्चों को उच्च नैतिकता की शिक्षा दी, वहीं उन्होंने बच्चों को वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों से अवगत कराने का कर्तव्य भी निभाया। इसके अलावा मौलाना ने अस्तित्व के लिए संघर्ष यानी डर के दर्शन को भी खूबसूरती से रचा। कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद, फरहत अख्तर और छात्र जुड़े रहे।

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