नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शुक्रवार को मयूर विहार स्थित अपने आवास पर प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने तीर्थ बनाने की प्रक्रिया को बताया। उन्होंने कहा कि कृष्ण अवतार होने और ऋषि होने के कारण प्रभु नहीं थे, बल्कि इसलिए प्रभु थे क्योंकि उन्होंने जेल, वन, पर्वत, नदी, नगर को तीर्थ बनाया।
तीर्थ अनन्त काल तक अस्तित्त्व में रहते हैं। श्री कृष्ण ने जन्म लेकर जेल को तीर्थ बना दिया। उन्होंने जन्म लेने, भागने, रास करने, लीला करने, वर्षा से रक्षा करने से मथुरा, व्रज, वृन्दावन, यमुना, गोवर्धन, मधुवन, अम्बिका वन सभी को तीर्थ बना दिया। एक कृष्ण ने 27 गोपियों के साथ इस प्रकार नृत्य किया जैसे एक चन्द्र 27 नक्षत्रों पर एक साथ प्रकाश डालता है। जो वन ध्रुव की तपस्या के कारण तपस्थली था, वह कृष्ण की रासलीला के कारण तीर्थ बना। इस प्रकार कृष्णलीला के अन्तर्गत सभी तीर्थों का वर्णन हुआ। मोह न रखना ही तीर्थ का वास्तविक स्वरूप है।
चैतन्य महाप्रभु ने नवद्वीप (बंगाल) से उत्तर प्रदेश की यात्रा कर इन तीर्थों की खोज की। त्रिपाठी जी ने गोविन्द दामोदर माधवेति के महत्त्व को बताया। मुचुकुन्द की कथा से मुचुकुन्द गुफा (कन्हेरीकेव्स) तीर्थ के विषय में बताया। सान्दीपनि ऋषि के आश्रम उज्जैन तीर्थ की कथा सुनाई। शनिवार की कथा में स्यमन्तक मणि, हस्तिनापुर कर्षण, देवकी पुत्र शोक निवारण, साम्बशाप आदि की कथा में आने वाले तीर्थों का वर्णन होगा।
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