नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। अभयमन्त्र के साथ
प्रारम्भ कथा में प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने बलि-वामन की कथा को नवीन दृष्टि दी।
बलि बहुत बड़ा ऋषि, उसे क्यों बँधना पडा? साध्य पर दृष्टि रखने वाला कितना ही बडा क्यों
न हो, दानव बन जाता है। किन्तु जिसकी सुरक्षा आदि की व्यवस्था स्वयं विष्णु करें वो
बहुत बड़ा ऋषि है। पयोव्रत का वैज्ञानिक और प्रायोगिक रूप बताया।
राजा सत्यव्रत एक ऋषि हुए,
जिन्होंने शफरी से मत्स्यावतार का रूप धारण करने वाले विष्णु द्वारा सृष्टि में सहयोग
दिया। च्यवन ऋषि और शर्यातिपुत्री सुकन्या की कथा में अश्विनी कुमार द्वारा च्यवन को
युवा बनाने का वर्णन किया। ऋषि अम्बरीष की कथा से सन्देश मिलता है कि विष्णु अपने भक्तों
की स्वयं रक्षा करते हैं। वैवस्वत वंश के महादानी ऋषि मान्धाता की सौ पुत्रियों का
विवाह ऋषि सौभरि के साथ हुआ। सौभरि जल और थल में तपस्या करने वाले ऋषि हुए। ब्राह्मण
अजीगर्त के पुत्र शुनः शेपः की कथा हुई। शुनः शेपः के ऋग्वेद में 21 मन्त्र मिलते हैं।
निमि - वसिष्ठ – विश्वामित्र, ऋषि जमदग्नि - परशुराम, ययाति - पुरुरवा की कथा हुई।
कृष्णजन्म के साथ कृष्ण के ऋषित्व की चर्चा हुई। मुख्य बिन्दु ऋषि को खोजना नहीं पड़ता,
पहचानना होता है। शुक्रवार को ऋषि गर्ग, सन्दीपनि, मुचुकुन्द आदि की कथा होगी।
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