नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के मयूर विहार स्थित आवास पर भागवत में ऋषियों की कथा का प्रारम्भ हुआ। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि चार कथाएं प्रधान होती हैं। ऋषिकथा, तीर्थकथा और तपस्या का विधान बताने वाली कथा। सामान्य रूप से अवतारों की कथाएं कही जाती हैं।
वे ऋषि जो अवतारों को मार्ग निर्देश कर अवतार बनाते हैं, वे तीर्थ जो उनके अवतार से पहले ही विद्यमान होते हैं, किसी महान् कार्य करने के लिए जो तपस्या बताई और की जाती है, उसका महत्त्व बहुत अधिक है। इसलिए भागवत के ऋषियों की कथा हो रही है। वेद का प्रारम्भ अग्नि देवता की प्रार्थना से होता है, जो मनुष्य के भय निवारक हैं। प्रो. त्रिपाठी ने अथर्ववेद का अभयमन्त्र बताया। ऋषि और मुनि के भेद को स्पष्टं किया। भागवत के ऋषियों के क्रम में शौनक, चार कुमार, नारद, वराह, उद्धव( बुद्ध), व्यास आदि का वर्णन किया। अवतारों के कार्य में सहयोगी दैत्य भी ऋषि ही हैं, जो भागवत कार्य में सहायक होते हैं। मंगलवार की कथा में कर्दम आदि ऋषियों की कथा होगी।
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