नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार में अपने
आवास पर प्रो. त्रिपाठी ने कृष्ण द्वारा विभिन्न तीर्थ बनाने की प्रक्रिया का वर्णन
किया। रुक्मणिविवाह का प्रसंग बताता है कि अब कृष्ण का ब्रह्मचर्य समाप्त हुआ। बाँसुरी
छूट गई, कर्मक्षेत्र में प्रवेश, गृहस्थ आश्रम में प्रवेश। जीवन को तीर्थ बनाना है
तो चारों आश्रम का विधान चलना चाहिए। कृष्णपुत्र प्रद्युम्न के अपहरण, शम्बर और मायावती
की कथा हुई। जन्म-जन्मान्तरों के बाद भी अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है, जैसे मायावती
रूपी रति को प्रद्युम्नरूप कामदेव की प्राप्ति हुई।
स्यमन्तकमणि की कथा में
बिना किए कर्म के कलंक लगने की चर्चा हुई। बलराम द्वारा हस्तिनापुर के कर्षण की कथा
हुई। खाण्डववन के दाह और इन्द्रप्रस्थ निर्माण का वर्णन हुआ। कृष्ण-सुदामा कथा से सन्देश
मिलता है कि तीर्थ में जो देखना चाहता है, उसे वही दिखाई देता है। तीर्थसेवन से मिलने
वाले आनन्द का अनुभव व्यक्ति स्वयं ही कर सकता है, किसी अन्य को दिखाई नहीं देता। समन्तपञ्चक
तीर्थ की कथा में तीर्थ के शोकनिवारक स्वरूप के दर्शन होते हैं। तीर्थ इच्छाओं की पूर्ति
कराने वाला होता है। देवकी के छः पुत्रों की मुक्ति से ज्ञात होता है कि तीर्थ मोक्ष
प्रदान करता है। साम्बशाप की कथा सिखाती है कि अन्यत्र किए पाप की निवृत्ति तीर्थ में
हो जाती है, किन्तु तीर्थ में किए पाप से मुक्ति नहीं मिलती। शनिवार की कथा में तीर्थ
के परम रूप का वर्णन होगा। निमि - अवधूत, यदु- अवधूत, सनकादि ऋषियों, खट्वांग राजा
के भिक्षुगीत, ऐल पुरूरवा के अन्तर्गत आने वाले तीर्थों की चर्चा होगी।
No comments:
Post a Comment