नेशनल सेमिनार में सरदार पटेल की एकात्म दृष्टि, पत्रकारिता के दायित्व और भारत की सांस्कृतिक आत्मा पर हुआ विचार-मंथन
जब राष्ट्र कठिनतम दौर से गुजर रहा होता है तब उस विपरीत परिस्थितियों से निकालने के लिए लौह पुरूष का जन्म होता है
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। “सरदार वल्लभभाई पटेल भारतीय एकता के शिल्पकार थे। उनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि था। तमाम कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने जिस अद्भुत इच्छाशक्ति और निर्णायक नेतृत्व के साथ भारत को एक सूत्र में बांधा, वह ऐतिहासिक है। यदि कश्मीर के मामले में पंडित जवाहरलाल नेहरू विशेष हस्तक्षेप न करते, तो सरदार पटेल पाक अधिकृत कश्मीर को भी भारत में शामिल कर चुके होते।”
ये विचार प्रख्यात चिंतक, लेखक और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर बलदेव भाई शर्मा ने तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल और आई सी एस आर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्वि दिवसीय राष्ट्रीय एकता सेमिनार
भारत के एकीकरण में सरदार पटेल की विचारधारा एवं उनकी भूमिका के उत्प्रेरक के रूप में मीडिया की भूमिका के उद्घाटन सत्र में व्यक्त किए। प्रो. शर्मा ने कहा कि सरदार पटेल के लिए व्यक्तिगत स्वार्थ का कोई स्थान नहीं था। उनका दृष्टिकोण व्यापक, राष्ट्रीय और दूरदर्शी था। उन्होंने 500 से अधिक देशी रियासतों का भारत में एकीकरण कर एक ऐसे राष्ट्र की नींव रखी, जो आज मजबूत, सशक्त और समरस है।
पत्रकारिता का मूल उद्देश्य है भारत और भारतवासियों का हित
पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में प्रो. शर्मा ने कहा कि पत्रकारिता केवल समाचारों का संप्रेषण भर नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रहित और समाजोत्थान का सशक्त माध्यम है। उन्होंने कहा, “जो पत्रकार जीवन भर सीखने की जिज्ञासा रखता है, वही वास्तव में अच्छा पत्रकार बन सकता है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि पत्रकारों को अध्ययनशील बने रहना चाहिए, क्योंकि ज्ञान के समान पवित्र कुछ भी नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि भारत की विशेषता 'विविधता में एकता' केवल एक नारा नहीं, बल्कि हमारे सांस्कृतिक जीवन का मूल तत्व है। भारत ने सदैव संपूर्ण विश्व को बंधुत्व, सह-अस्तित्व और एकात्मता का संदेश दिया है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना भारत की आत्मा है, और आज भी यह भावना हमारे राष्ट्रीय चरित्र में जीवंत है।
“सरदार पटेल जनमानस की स्वाभाविक पसंद थे” : पूर्व सांसद राजेंद्र अग्रवाल
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे मेरठ-हापुड़ लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद श्री राजेंद्र अग्रवाल ने कहा कि सरदार पटेल देश की जनता की स्वाभाविक पसंद थे। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर स्वतंत्र भारत के निर्माण तक, उन्होंने अथक परिश्रम, समर्पण और संगठनात्मक दक्षता का परिचय दिया। उन्होंने कहा, “आज आवश्यकता इस बात की है कि सरदार पटेल के विरुद्ध खड़ा किया गया नकारात्मक नैरेटिव बदला जाए और देश की युवा पीढ़ी को उनकी वास्तविक भूमिका से परिचित कराया जाए। पूर्व सांसद अग्रवाल ने बल देते हुए कहा कि हर नागरिक को सरदार पटेल की जीवनी पढ़नी चाहिए। उनका जीवन केवल एक राजनेता का नहीं, बल्कि एक सच्चे राष्ट्र निर्माता का जीवन है। उन्होंने 1931 से लेकर अपने जीवन के अंतिम क्षण तक राष्ट्रीय एकता के लिए अथक प्रयास किए। आज भारत को फिर से वैसी ही दृढ़ इच्छाशक्ति और राष्ट्रभक्ति की आवश्यकता है, जैसी सरदार पटेल में थी।
“सरदार पटेल आयरन मैन ही नहीं, उत्कृष्ट प्रशासक भी थे” : प्रो. सत्य प्रकाश गर्ग
विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर सत्य प्रकाश गर्ग ने अपने संबोधन में कहा कि सरदार पटेल न केवल स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनानी थे, बल्कि आजादी के बाद भारत के पुनर्निर्माण में भी उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही। वे संविधान के गहन ज्ञाता थे और विभिन्न महत्वपूर्ण समितियों के सदस्य भी रहे। उन्होंने प्रशासनिक कुशलता, संगठन शक्ति और दूरदर्शिता का परिचय देते हुए यह सिद्ध किया कि क्यों उन्हें 'लौह पुरुष' कहा गया।
स्वागत और संचालन
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी का स्वागत भाषण तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने दिया। उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ. दीपिका वर्मा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत किया गया।
इस सेमिनार में 11 राज्यों से रजिस्ट्रेशन हुंए, 67 शोध पत्र प्राप्त हुए
प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षा प्रो॰ बन्दना पाण्डेय ने कहा कि जब राष्ट्र कठिनतम दौर से गुजर रहा होता है तब उस विपरीत परिस्थितियों से निकालने के लिए लौह पुरूष का जन्म होता है। लौह पुरूष ही राष्ट्र के लिए आधार बनाने का कार्य करते हैं। उन्होंनें शोधार्थियों से कहा कि शोध करते समय इंडिया नहीं वरन् भारत और भारतीयता को केन्द्र बिन्दु बनाना होगा। डॉ॰ देब्रति धर ने कहा कि शोधार्थियों को अपना शोध पत्र लिखते समय शोध के मानकों और मापदण्डों का पालन करना चाहिए।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षा प्रो॰ ताशा परिहार ने कहा कि शोधार्थियों को शोध विधि, उद्देश्य, परिकल्पना और आंकड़ों के एकत्रीकरण और विश्लेषण की उपयुक्त विधियों का प्रयोग करते हुए शोध पत्र लिखना चाहिए। इस सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की डॉ॰ कुमकुम पाठक ने कहा कि सरदार पटेल में प्रशासनिक दक्षता, नीति-निर्माण और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। डॉ॰ राजेन्द्र कुमार ने सरदार पटेल के विषय में सरदार पटेल के विषय में अपने विचार व्यक्त किए।
आज के अन्तिम तकनीकी सत्र में अपना बीज वक्तव्य देते हुए आर्गनाइजर के सम्पादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि विन्सटन चर्चिल, क्लेंमेंट एटली और माउन्टबेटन ने भारत के विभाजन को तय किया। उनका उद्देश्य भारत को खण्डित और लहूलुहान कर आजादी देना था। प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि पटेल जी का कहना था कि शक्ति के साथ शान्ति की बात करनी चाहिए। क्योंकि शक्तिशाली की ही बात सुनी जाती है। प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि पटेल का मानना था कि जिसकी मानसिकता असतुष्टि की हो वह सुधर नहीं सकता। प्रफुल्ल केतकरन ने बताया कि 7 अप्रैल 1949 को पटेल ने नेहरू को पत्र लिखते हुए कहा था कि यदि कश्मीर के विषय को संयुक्त राष्ट्र संघ में लेकर गए तो भारत को पछताना पड़ेगा। आज पटेल की बात अक्षरशः सही साबित हो रही है। पत्रकारिता के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि मूल पत्रों और सन्दर्भ ग्रन्थ को पढ़कर ही अपने शोध पत्र और रिपोर्ट तैयार करना चाहिए। प्रोª॰ पवन मलिक ने कहा कि सरदार पटेल ने राष्ट्र प्रथम की संकल्पना पर जोर दिया था। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो॰ अराधना गुप्ता ने कहा कि इतिहास में विसंगतियां है, उन्हें दूर करने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर बनासर हिन्दू विश्वविद्यालय से डॉ विवेक पाठक, डॉ सोनिया हुड्डा व अन्य विश्वविद्यालयों से आए शिक्षक व शोधाथियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। इस अवसर पर एक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया. जिसमें विभाग और विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के विद्यार्थियों ने देशभक्ति के गीत और नृत्य की प्रस्तुति दी. विभाग शिक्षिका डॉ॰ बीनम यादव, लव कुमार सहित कर्मचारी, शोधार्थी व विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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