नित्य संदेश।
माँ के भाल का श्रृंगारउजड़ा है सिंदूर माँग का
शौर्य से होगा प्रहार
रिपुदल के शोणित से होगा
भारत माँ के भाल का शृंगार
धधक रही ज्वाजल्य ज्वालाएँ
चहुँ ओर उठी रक्तिम लपटें
कंपित आतंकी का स्वर है
छोड़ रहीं जड़ शाखाएँ
तीरों और तूणीरों में
अद्भुत शक्ति भर आई है
भू गर्भ से नभ के तारों तक
अस्त्रों की ही गरिमाई है
जवाब ईंट का पत्थर से
देने की अब घड़ी आई है
सच पूछो तो भारत माँ से
“प्रीत” निभाने की रूत आई है ।
वंदे मातरम् 🇮🇳
प्रीति दुबे
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