नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। ग्लोबल इनिशियेटिव फॉर अस्थमा यानी अस्थमा के लिए
वैश्विक पहल की थीम साँस के जरिए उपचार को सबके लिए सुलभ बनाना के साथ चिह्नित, इस
साल का विश्व अस्थमा दिवस भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य यात्रा में एक महत्वपूर्ण मौके
पर आता है। अस्थमा और सांस की अन्य पुरानी बीमारियाँ गैर-संचारी रोग से संबंधित मौतों
में तीन शिखर की योगदानकर्ताओं में से हैं। यह
देश भर में होने वाली सभी मौतों का आधे से अधिक हिस्सा हैं। इसके बावजूद गंभीर
अस्थमा के लक्षण वाले लगभग 70 प्रतिशत व्यक्तियों की बीमारी का पता नहीं चलता है।
2.5 प्रतिशत से भी कम लोग प्रतिदिन अनुशंसित उपचार इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का उपयोग
करते हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक दीर्घकालिक, सहयोगी रुख की आवश्यकता होती
है, जो जागरूकता, शिक्षा और पहुँच को एकीकृत करता है। जनता का सामना करने वाले सिप्ला
के बेरोक जिंदगी जैसे अभियान आधे दशक से अधिक समय से चल रहे हैं। टफ़ीज़ के साथ कंपनी
की ब्रीथफ्री पहल ने अकेले एफवाई 24-25 में एक
करोड़ से अधिक लोगों के जीवन को छुआ है।
इनहेलेशन थेरेपी के महत्व
और उपलब्ध उपचार की आवश्यकता पर जोर देते हुए डॉ. हरेंद्र कुमार (एमडी चेस्ट, मेरठ)
ने कहा, अस्थमा प्रबंधन का प्राथमिक लक्ष्य लक्षणों को नियंत्रित करना, बचाव वाली दवा
पर निर्भरता कम करना, अस्पताल में भर्ती होने से रोकना और फेफड़ों की कार्यक्षमता को
बनाए रखना, अंततः जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इन परिणामों को प्राप्त करने
के लिए समय पर निदान, सही इनहेलर का उपयोग और लगातार अनुपालन की आवश्यकता होती है।
दुर्भाग्य से इन क्षेत्रों में अक्सर खराब डिवाइस तकनीक, देखभाल तक सीमित पहुंच और
दीर्घकालिक समर्थन की कमी के कारण बाधा उत्पन्न होती है। ब्रीथफ्री जैसी पहल ऑन-ग्राउंड
स्क्रीनिंग कैंप, डिजिटल एजुकेटर प्लेटफॉर्म जैसे ऑनलाइन टूल और आसान श्कैसे करेंश्
डिवाइस प्रशिक्षण वीडियो के माध्यम से इन अंतरालों को पाटने में सहायता मिली है। ये
संसाधन रोगियों और देखभाल करने वालों को अस्थमा पर बेहतर नियंत्रण पाने में वास्तविक
अंतर लाते हैं।” इलाज की कमी को दूर करने में जागरूकता की भूमिका को रेखांकित करते
हुए डॉ. ने टिप्पणी की कि भारत में अस्थमा अभी भी बहुत सारी गलतफ़हमी की शिकार है। इनहेलर
के इस्तेमाल से जुड़ी भ्रांतियाँ और इस बीमारी का नाम तक न लेने में हिचक के कारण अक्सर
निदान और उपचार में देरी होती है। इन चुनौतियों का समाधान सिर्फ़ चिकित्सा हस्तक्षेप
से कहीं ज़्यादा है - इसके लिए निरंतर जागरूकता, शुरुआती शिक्षा और सार्वजनिक व निजी
दोनों क्षेत्रों से सामूहिक प्रयास की ज़रूरत है, ताकि ऐसा माहौल बनाया जा सके जहाँ
अस्थमा को पहचाना जाए, स्वीकार किया जाए और उसका प्रभावी ढंग से इलाज किया जाए। उन्होंने
आगे कहा, बेरोक जिंदगी जैसे जागरूकता अभियान और टफ़ीज़ की स्कूल यात्रा जैसे जमीनी प्रयास
सटीक जानकारी फैलाने और शुरुआती हस्तक्षेप को प्रोत्साहित करके सार्थक प्रगति कर रहे
हैं - खासकर बच्चों, देखभाल करने वालों और परिवारों के बीच।
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