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नित्य संदेश ब्यूरो |
मेरठ: रमज़ान का पवित्र महीना अपनी पूरी आध्यात्मिक शक्ति के साथ चल रहा है और इस मौके इकला रसूलपुर गांव में एक खूबसूरत मिसाल देखने को मिली। गांव की एक छोटी मस्जिद में तरावीह की नमाज़ के दौरान क़ुरान को पूरा पढ़ाने की खुशी में मस्जिद के लोगों ने मिलकर अपने इमाम साहब को सम्मानित किया। इस सम्मान के तौर पर इमाम को 15 हज़ार रुपये नकद और एक न्यू स्प्लेंडर प्लस बाइक भेंट की गई। यह घटना न सिर्फ धार्मिक उत्साह को दर्शाती है, बल्कि गांव वालों के बड़े दिल और आपसी भाईचारे की भावना को भी सामने लाती है।
इकला रसूलपुर गांव में कई मस्जिदें हैं, लेकिन यह छोटी मस्जिद अपने आकार में भले ही छोटी हो और वहां नमाज़ियों की संख्या कम हो, फिर भी लोगों का जज़्बा और इमाम साहब के प्रति सम्मान कम नहीं है। इस नेक काम ने पूरे इलाके में एक सकारात्मक संदेश फैलाया है। इकला गांव की यह छोटी सी मस्जिद और वहां के लोगों का यह कदम बताता है कि रमज़ान का असली मकसद सिर्फ रोज़े रखना नहीं, बल्कि दिलों को जोड़ना, नेकी को बढ़ावा देना और एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखना भी है। यह घटना न केवल गांव की एकता को दर्शाती है, बल्कि रमज़ान के इस पवित्र महीने की सच्ची रूह को भी ज़ाहिर करती है।
तारावीह और क़ुरान पढ़ने की अहमियत
रमज़ान का महीना मुसलमानों के लिए इबादत, तपस्या और क़ुरान से जुड़ाव का विशेष समय होता है। इस महीने में पढ़ी जाने वाली तारावीह की नमाज़ रमज़ान की खास पहचान है। यह एक ऐसी नमाज़ है जो रात में पढ़ी जाती है और इसमें क़ुरान के एक हिस्से को हर रात पढ़ा जाता है ताकि पूरे महीने में क़ुरान को पूरा किया जा सके। इसे "क़ियाम-उल-लैल" भी कहा जाता है, जिसका मतलब है रात में खड़े होकर इबादत करना। तरावीह न सिर्फ क़ुरान को समझने और उस पर अमल करने का मौका देती है, बल्कि यह अल्लाह के साथ रिश्ते को गहरा करने का भी जरिया है। इकला की छोटी मस्जिद में इस परंपरा को निभाने वाले इमाम साहब का सम्मान इस बात का सबूत है कि लोग इस इबादत को कितना महत्व देते हैं।
लैलातुल क़द्र: रमज़ान की सबसे मुकद्दस रात
रमज़ान की तमाम रातों में लैलातुल क़द्र सबसे खास मानी जाती है। इसे "शब-ए-क़द्र" भी कहा जाता है, जिसका मतलब है "महिमा की रात"। क़ुरान में सूरह अल-क़द्र में इस रात की महत्ता बताई गई है, जिसमें कहा गया है कि यह रात हज़ार महीनों से बेहतर है। ऐसा माना जाता है कि इसी रात में क़ुरान पहली बार हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) पर नाज़िल हुआ था। यह रात आमतौर पर रमज़ान के आखिरी दस दिनों में, खासकर 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं या 29वीं तारीख को आती है। इस रात में की गई दुआएं और इबादतें खास तौर पर कबूल होती हैं। लोग इस रात को नमाज़, क़ुरान की तिलावत और दुआओं में गुज़ारते हैं, ताकि अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल कर सकें।
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