नित्य संदेश। “दीन की तालीम के साथ-साथ दुनियावी तालीम भी मुस्लिमों के पास होना जरूरी है”, अक्सर उलमा अपनी तकरीरों में इन अल्फाजों का इस्तेमाल करते हैं। ये सही भी है। इसका समर्थन सरकार भी करती है, एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में विज्ञान। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम, सर अल्लामा मुहम्मद इकबाल, सैयद अहमद खान, सैयद अमीर अली और आगा खान जैसे विद्वानों के अलावा और भी बहुत सारे नाम हैं, जिन्होंने समाज को सही मार्ग दिखाया। ये मुस्लिमों के लिए भी रहनुमा बनकर उभरे। क्योंकि इनके पास दीन के साथ-साथ दुनियावी तालीम भी थी, तभी मार्गदर्शक बनें।
मेरठ के शहर काजी जैनुल साजिद्दीन अलीगढ़ विवि में प्रोफेसर थे, मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके थे, राष्ट्रपति अवार्ड भी उनको मिला था। हिंदू हो या मुस्लिम उनकी लोकप्रियता सभी जगह थी, देर रात्रि जब उनको सुपुर्द-ए-खाक किया गया, जनाजे में पूरा शहर उमड़ आया था। सबने उनको अंतिम सफर की विदाई नम आंखों से दी थी। सबकी आंखों में आंसू थे, और यह इसलिए थे क्योंकि लोगों ने एक ऐसा रहनुमा खो दिया था जो इंसानियत की बात करता था, अमन, चैन और सुकून की बात करता था।
शहर काजी की विरासत कौन संभालेगा? ये नया विवाद अब खड़ा हो गया है, ये समझिए “राजनीति” शुरू हो गई है। हालांकि, जैनुल साजिद्दीन के पुत्र प्रोफेसर डा. सलेकिन को शहर काजी रात में ही नियुक्त कर दिया गया था, उनको पगड़ी पहनाकर सबने अपनी स्वकृति भी दे दी थी, लेकिन शहर कारी शफीकुर्रहमान ने इसका विरोध किया और एक वीडियो जारी करके कहा कि वे इस मामले को लेकर पंचायत करेंगे, उसी में शहर काजी का चुनाव होगा।
शहर इमाम कारी शफीकुर्रहमान ने डॉ. सालिकीन को शहर काजी बनाए जाने पर एतराज जताया। कहा कि शहर काजी पूरे शहर के लिए बनाया जाता है, न कि घर के लिए। ऐसे शख्स को शहर काजी बनाना सही नहीं है, जो न हाफिज है न मौलवी, और न कारी। चंद लोग मिलकर किसी बच्चे को मुसलमानों पर थोप नहीं सकते। इस मसले पर मुस्लिम इकट्ठा होंगे और मशवरा कर किसी काबिल शख्स को यह जिम्मेदारी देंगे। किसी गैर आलिम को मुसलमान बर्दाश्त नहीं करेंगे। मौजूदा हालात में किसी बच्चे पर यह बोझ डालना मजाक है।
इस मामले में मैंने कई उलमाओं की राय जानी। सभी ने प्रोफेसर सलेकिन के चुनाव को सही ठहराया, तर्क दिया कि डा. सलेकिन के पास दीन के साथ-साथ दुनियावी तालीम भी है, वह बेहतर तरीके से मुस्लिमों के हक में आवाज को उठा पाएंगे, भले ही उम्र कम हो, लेकिन समय के साथ उनकी समझ भी बढ़ती जाएगी। शहर कारी शफीक के पास भले ही दीन की तालीम हो, लेकिन दुनियावी शिक्षा से वे महरूम है। अब मुस्लिम समाज को ऐसे ही लीडर की जरूरत है, जिसके पास दुनियावी तालीम भी हो।
आपकी क्या राय है, क्या प्रोफेसर डा. सलेकिन का शहर काजी चुना जाना सही है? या शहर इमाम कारी शफीकुर्रहमान अपनी जगह सही है और उनका विरोध प्रकट करना जायज है…
लियाकत मंसूरी
संपादक, नित्य संदेश
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