-करीब 834 साल पुरानी है
ईदगाह, कुतुबद्दीन ऐबक ने कराया था
निर्माण
लियाकत मंसूरी
नित्य संदेश, मेरठ। शाही ईदगाह में ईद-उल-कितर की नमाज को लेकर तैयारियां शुरू हो गई है। शहर काजी प्रोफेसर डा. जैनुल सालिकीन सिद्दीकी ने बताया, सोमवार सुबह 7:45 बजे ईद की नमाज अदा होगी। उन्होंने अवाम से अपील की है कि सड़क पर नमाज अदा न करें।
ईदगाह कमेटी के सचिव सैयद मोहम्मद सलमान ने शाही ईदगाह के बारे में बताया कि दिल्ली रोड स्थित शाही ईदगाह करीब 834 साल पुरानी है। इसका निर्माण 1191 ईसवीं के बीच उस समय कराया गया था, जब दिल्ली
की सल्तनत पर कुतबुद्दीन ऐबक राज कर रहा था, उसी ने इसका निर्माण कराया था। उस
समय कुतबुद्दीन कई बार यहां पर ईद की नमाज पढ़ने के लिए आया था। 1857 की क्रांति की शुरुआत वाले
मेरठ जिले में जर्रे-जर्रे में इतिहास बसा हुआ है।
इतिहास चाहे महाभारत काल का हो या फिर रामायण काल का। यहां
पर कौरव-पांडवों की यादों से जुड़ा हस्तिनापुर हैं तो रावण की
ससुराल और उसकी पत्नी मंदोदरी का मायका है।
बेगम समरू का मकबरा है तो शाही ईदगाह भी है, जो अपने आप में एक इतिहास है। इतिहास भी ऐसा कि पूरे उत्तरी भारत में तो ऐसी ईदगाह
कहीं है भी नहीं। ईदगाह कमेटी के सचिव सैयद सलमान कहते हैं कि पूरे
उत्तरी भारत में ऐसी शाही ईदगाह नहीं है, जिसमें इंटों पर आयतें लिखी हो, वह भी अरबी भाषा में। शाही ईदगाह करीब 834 साल पुरानी
है। इसका निर्माण 1191 ईसवीं के बीच उस समय कराया गया
था, जब दिल्ली की सल्तनत पर कुतबुद्दीन ऐबक बैठा था। कुतबुद्दीन कई बार यहां पर
ईद की नमाज पढ़ने के लिए आया था।
जानकारों के अनुसार, बादशाह घोड़े पर
दिल्ली से नमाज पढ़ने आता था। उसके साथ पूरा लाव लश्कर होता
था। नमाज पढ़ने के बाद वहां पर बड़ी-बड़ी देग चढ़ाई जाती थी
और उसमें गरीबों के लिए भोजन बनाया जाता, जो शहर और आस-पास के
क्षेत्रों में बांटा जाता था।
40 हजार लोग पढ़ सकते हैं एक साथ नमाज
ईदगाह भीतर से इतनी विशाल है कि इसके
भीतर 131 सफे एक साथ बिछाई जाती है। जिसमें करीब 40 हजार अकीदतमंद
एक साथ नमाज अदा करते हैं। ईदगाह की एक और खासियत है कि
निर्माण के दौरान जमीन के भीतर इसकी कोई बुनियाद नहीं रखी
गई। ईदगाह को सीधे बिना बुनियाद के ही बनाया गया है। ईदगाह के निर्माण में मिट्टी और चूने के मिश्रण का
प्रयोग किया गया। पूरी ईदगाह मिट्टी की चिनाई से बनाई गई है।
ईंटों पर अरबी में लिखी है आयतें
दिल्ली रोड स्थित इस ईदगाह की सबसे आम और अलग खासियत यह है कि इसके निर्माण में जिन
ईंटों का प्रयोग किया गया है, उनमें अरबी की इबारत लिखी है। एक-एक शब्द को
अलग-अलग करने में बोलकर, उसे अच्छी
तरह से पढ़कर, उसे जोड़कर बनाया गया। ईदगाह की ओर देखने पर पता चलता है कि इसकी शुरुआत कुरान के पहले शब्द
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान से की गई है।
इतिहासकारों का कहना है कि पूरे हिन्दुस्तान में जितनी भी
ईदगाह है, उनमें अगर किसी में ईंटों पर
इबारत लिखी हुई है तो सिर्फ मेरठ की शाही ईदगाह में ही है।
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