नित्य संदेश ब्यूरो
नोएडा। भारत में किडनी की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन अधिकतर लोग इसके शुरुआती लक्षणों को पहचान नहीं पाते। क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक गंभीर समस्या बनती जा रही है, जिससे लगभग 15-17% लोग प्रभावित हैं। डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, पानी की कमी और जरूरत से ज़्यादा पेनकिलर जैसी दवाओं का सेवन इसकी प्रमुख वजहें हैं। जागरूकता की कमी और देर से पहचान के कारण अधिकतर मरीज एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं, जहां डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता।
डॉ. विपिन सिसोदिया (कंसल्टेंट - यूरोलॉजी, यथार्थ अस्पताल, ग्रेटर नोएडा) कहते हैं, "किडनी की बीमारियां धीरे-धीरे बढ़ती हैं और शुरुआत में कोई बड़ा लक्षण नहीं देतीं, लेकिन शरीर हमें संकेत जरूर देता है। लगातार थकान, पेशाब में बदलाव, सूजन या भूख न लगना जैसी दिक्कतों को नज़रअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। सही समय पर जांच और इलाज से न सिर्फ किडनी फेल होने से बचा जा सकता है, बल्कि बीमारी को बढ़ने से भी रोका जा सकता है। जीवनशैली में सुधार, सही खानपान और हाइड्रेशन से किडनी को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।" किडनी की बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, लेकिन शरीर शुरुआत में ही कुछ संकेत देने लगता है। शरीर में सूजन आना इसका पहला संकेत हो सकता है, खासकर चेहरे, हाथ-पैर या टखनों में। जब किडनी सही से काम नहीं कर पाते, तो शरीर में पानी जमा होने लगता है, जिससे सूजन आ जाती है। पेशाब की मात्रा और रंग में बदलाव आ सकता है, जैसे बार-बार पेशाब आना, कम पेशाब आना या झागदार और गहरे रंग का पेशाब होना।
कई मरीजों को कमजोरी और थकान महसूस होती है क्योंकि खून में गंदगी जमा होने लगती है। सुबह के समय भूख न लगना, उल्टी आना भी सामान्य लक्षण हैं। कुछ लोगों को त्वचा में खुजली या रूखापन महसूस हो सकता है, जो शरीर में मिनरल्स के असंतुलन का संकेत है। एनीमिया बढ़ने पर सांस फूलने लगती है और ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है। ये सभी संकेत बताते हैं कि किडनी ठीक से काम नहीं कर रहे और जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।
भारत में हर साल दो लाख से अधिक नए मरीजों को किडनी फेलियर की समस्या होती है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण अधिकतर मरीज तब अस्पताल पहुंचते हैं, जब बीमारी गंभीर हो चुकी होती है। डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को सबसे ज्यादा खतरा होता है। भारत में लगभग 40% मरीजों में सीकेडी का मुख्य कारण डायबिटीज ही है। ज्यादा नमक खाना, बिना डॉक्टर की सलाह के दवाएं लेना और खासकर उत्तर और मध्य भारत जैसे गर्म इलाकों में लगातार शरीर में पानी की कमी रहना भी किडनी की समस्या बढ़ा सकता है।
किडनी की बीमारी अगर शुरुआती चरण में पकड़ में आ जाए, तो इसे दवा, सही खानपान और पर्याप्त पानी पीकर कंट्रोल किया जा सकता है। नियमित खून और पेशाब की जांच, सीरम क्रिएटिनिन टेस्ट और किडनी फंक्शन टेस्ट करवाने से बीमारी को जल्दी पहचाना जा सकता है।
अल्ट्रासाउंड और इमेजिंग जांच से किडनी में पथरी, रुकावट या किसी अन्य संरचनात्मक समस्या का पता लगाया जा सकता है। जिन लोगों को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या अन्य जोखिम हैं, उन्हें भले ही कोई लक्षण न दिखें, फिर भी समय-समय पर किडनी की जांच करवानी चाहिए।
किडनी की बीमारी धीरे-धीरे असर डालती है और अगर समय रहते इलाज न लिया जाए, तो गंभीर नुकसान हो सकता है। जागरूकता और नियमित हेल्थ चेकअप से लोग किडनी की गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं। शरीर के संकेतों को नजरअंदाज न करें और अपनी सेहत का ख्याल रखें, ताकि भविष्य में बड़ी समस्या से बचा जा सके।
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