नित्य संदेश। जैसी उम्मीद थी, वैसा ही हुआ, प्रोफेसर डा. सालेकिन सिद्दीकी को शहर काजी मान लिया गया। गुरुवार को सभी कयास और अफवाहों पर विराम लग गया। जिस तरह अवाम ने खुले दिल से डा. सालेकिन का स्वागत, सम्मान किया, उसी से अंदाजा लग गया था कि सालेकिन ही विरासत को संभालेंगे। हालांकि, अभी सालेकिन को बड़े हौंसले और दिल की जरूरत है, क्योंकि पूर्व शहर काजी स्व. साजिद्दीन का रूखसत होना, उनको भूलना मुश्किल है। और ये गम सालेकिन के अक्श पर दिखता भी है।
इसमें
कोई शक नहीं कि सालेकिन के लिए
शहर काजी की पंरपरा और विरासत को संभाले रखना आसान नहीं है, 90
के दशक से लेकर 2025 तक शहर की आबो हवा में काफी
बदलाव आए हैं, हालांकि ऐसा नहीं है कि इस परिवार ने दंगा,
उपद्रव, बवाल न देखा हो, 1947 से लेकर अब तक और आजादी से पूर्व तक, प्रशासन के साथ
इस परिवार के सदस्य खड़े हुए दिखाई दिए हैं।
मैं नायब
शहर काजी एडवोकेट जैनुल राशिद्दीन का यहां जिक्र करना जरूरी समझूंगा। हालांकि, वे भी अब बुजुर्ग हो
चले हैं, लेकिन मैंने उनका वो दौर देखा है, जब वे स्कूटर पर अखबारों के दफ्तर-दफ्तर जाते थे। शहर
काजी साजिद्दीन से ज्यादा एडवोकेट जैनुल राशिद्दीन का वकार पुलिस प्रशासन में आज भी
है। हर मजहब के लोग उनसे प्रेम करते हैं, स्नेह रखते हैं,
उनको चाहते हैं।
गुरुवार
को नवनियुक्त शहर काजी प्रोफेसर डा. सालेकिन सिद्दीकी ने होली की शुभकामनाएं देते
हुए अवाम से शांति बनाए रखने की अपील की है। खासकर मुस्लिमों से उन्होंने निवेदन किया
है कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखे, होली रंगों का त्योहार है,
कपड़ों पर अगर रंग गिर जाए तो मुस्कुराकर निकल जाए। रमजान वैसे भी सब्र
का महीना है, हम जितना धैर्य, सहन शक्ति
दिखाएंगे, तभी लोगों के दिलों में अपनी जगह बना पाएंगे।
अब बात करते हैं शहर
काजी के इस्तकबाल की। उत्तर प्रदेश एसोसिएशन ऑफ जर्नलिस्टस (उपज) के जिलाध्यक्ष अजय चौधरी की
अगुवाई में पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल नवनियुक्त शहर काजी से मिला। उनको पगड़ी
पहनाकर और शॉल ओढ़ाकर सम्मानित किया। उसके बाद सामूहिक रूप से
अपना समर्थन दिया। समर्थन का ये सिलसिला अभी लम्बा चलेगा।
मेरी ओर से पीएचडी
धारक शहर काजी को शुभकामनाएं, उम्मीद है वे भी उसी इतिहास को धोराएंगे, जो उनके पूर्वजों
ने शहर के लिए कुर्बानी दी है…
लेखक
लियाकत मंसूरी
संपादक, नित्य संदेश
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