विश्वविद्यालय का दायित्व केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका: प्रोफेसर संगीता शुक्ला
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की साहित्यिक–सांस्कृतिक परिषद द्वारा पद्मश्री सम्मानित लोक गायिका एवं लेखिका मालिनी अवस्थी की चर्चित कृति “चन्दन का किवाड़” पर एक सार्थक संवाद कार्यक्रम का आयोजन अटल सभागार में किया गया। यह आयोजन समकालीन हिंदी साहित्य और लोकसंवेदना के बीच सेतु स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला द्वारा की गई।
“चन्दन का किवाड़” मूलतः जीवन, स्मृति, स्त्री अनुभूति और लोकसंस्कृति के प्रति गहरे प्रेम की कृति है। यह पुस्तक आत्मकथात्मक होते हुए भी केवल लेखिका की निजी कथा नहीं है, बल्कि उसमें गाँव, परंपरा, लोकगीत, रिश्ते और समय के साथ बदलते समाज की जीवंत झलक मिलती है। जिस प्रकार चन्दन अपनी सुगंध से वातावरण को आलोकित करता है, उसी प्रकार यह कृति पाठक के मन में संवेदना और आत्मीयता की खुशबू भर देती है। ‘किवाड़’ यहाँ स्मृतियों और अनुभवों के उस द्वार का प्रतीक है, जो पाठक को आत्मचिंतन की ओर ले जाता है।
पद्मश्री मालिनी अवस्थी भारतीय लोकसंगीत की एक विशिष्ट पहचान हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश की लोकपरंपराओं—कजरी, सोहर, चैती और निर्गुण—को देश-विदेश के मंचों तक पहुँचाया है। लोकसंस्कृति के प्रति गहरा लगाव, सतत साधना और सामाजिक सरोकारों ने उनकी रचनात्मक यात्रा को दिशा दी है। गायन के साथ-साथ लेखन के माध्यम से भी उन्होंने लोकजीवन को शब्दों में सहेजने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। “चन्दन का किवाड़” उनकी इसी सांस्कृतिक और रचनात्मक यात्रा का साहित्यिक विस्तार है।
पद्मश्री मालिनी अवस्थी ने अपने संदेश में कहा कि “चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ जैसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान में मेरी कृति ‘चन्दन का किवाड़’ पर संवाद का आयोजन होना मेरे लिए अत्यंत भावनात्मक अनुभव है। यह कृति लोकसंगीत की आत्मा, उसकी सुगंध और उसके पीछे छिपी जीवन-दृष्टि को पाठकों तक पहुंचाती हैं।
विश्वविद्यालय द्वारा साहित्य और लोकसंस्कृति को अकादमिक विमर्श से जोड़ने का यह प्रयास सराहनीय है। ऐसे मंच नई पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मैं इस आयोजन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन और साहित्यिक–सांस्कृतिक परिषद का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहीं कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि “विश्वविद्यालय का दायित्व केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज, संस्कृति और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ‘चन्दन का किवाड़’ पर आयोजित यह संवाद लोकसंस्कृति और समकालीन साहित्य के बीच सार्थक संवाद स्थापित करता है तथा छात्रों में संवेदनशील और सांस्कृतिक दृष्टि विकसित करने में सहायक सिद्ध होता है।”
कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर के.के. शर्मा ने कहा कि भारतीय लोकजीवन, स्मृतियों और संवेदनाओं का सजीव दस्तावेज़ “चन्दन का किवाड़” पर आयोजित यह संवाद शब्द, स्मृति और संवेदना के माध्यम से पाठक और श्रोता के मन का द्वार खोलने का एक सार्थक प्रयास है। साहित्यिक–सांस्कृतिक परिषद की अध्यक्ष प्रोफेसर नीलू जैन गुप्ता ने कार्यक्रम के अंत में सभी वक्ताओं, अतिथियों और सहभागियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “ऐसे साहित्यिक संवाद विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक परिवेश को समृद्ध करते हैं और विद्यार्थियों को रचनात्मक चिंतन की दिशा प्रदान करते हैं।”
इस दौरान प्रोफेसर मृदुल कुमार गुप्ता, प्रोफेसर बीरपाल सिंह, प्रोफेसर भूपेंद्र सिंह, प्रोफेसर बिंदु शर्मा, प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा, डॉक्टर मनीषा, प्रोफेसर राकेश कुमार शर्मा सहित हिंदी, उर्दू, संस्कृत इतिहास, सोशियोलॉजी आदि विभागों के शिक्षक शिक्षिकाएं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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