Breaking

Your Ads Here

Tuesday, December 2, 2025

आत्महत्या की बढ़ती घटनाएँ समाज के लिए बन रही गंभीर चिन्ता का विषय

 


डा. अनिल नौसरान

नित्य संदेश, मेरठ। आज के समय में आत्महत्या की बढ़ती घटनाएँ समाज के लिए एक गंभीर चिन्ता का विषय बनती जा रही हैं। यह केवल एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक, पारिवारिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा गहरा मुद्दा है। हर दिन कोई न कोई युवा, कोई छात्र, कोई कर्मचारी, कोई प्रेमी–युगल या कोई परिवार से दबाव झेल रहा व्यक्ति इस चरम कदम की ओर बढ़ जाता है। लेकिन क्या यह समाधान है? बिल्कुल नहीं। आत्महत्या एक क्षणिक आवेग में लिया गया निर्णय होता है, जिसका असर जीवनभर दूसरों पर रहता है।


प्रेमी युगलों में बढ़ती भावनात्मक अस्थिरता

युवाओं के बीच प्रेम संबंधों में अस्थिरता बढ़ रही है। छोटी–छोटी बातों में टूट जाना, अपेक्षाएँ पूरी न होना, विवाद या अस्वीकार, ये सभी परिस्थितियाँ भावनात्मक तनाव को बढ़ाती हैं। प्रेम जीवन महत्वपूर्ण है, लेकिन जीवन उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।


अधीनस्थ कर्मचारियों पर अनुचित दबाव

कुछ स्थानों पर वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर क्षमता से अधिक काम डालते हैं, समय पर अवकाश नहीं देते और लगातार दबाव बनाते रहते हैं। यह व्यवहार मानसिक थकान, अवसाद और निराशा का कारण बनता है। कार्यस्थल ऐसा होना चाहिए जहाँ व्यक्ति सम्मान, सहयोग और संतुलन के साथ काम कर सके।


शादी में असमान अपेक्षाएँ और मानसिक तनाव

हमारा समाज अब भी पेशे और आर्थिक स्थिति के आधार पर विवाह तय करने की प्रवृत्ति रखता है। जब लड़कों और लड़कियों के बीच समान अपेक्षाएँ नहीं होतीं, तो रिश्तों में संतुलन बिगड़ जाता है। कई पुरुष कामकाजी महिलाओं से भी वही अपेक्षाएँ रखते हैं जो एक गृहिणी से की जाती हैं, जबकि दोनों परिस्थितियाँ बिल्कुल अलग हैं। समानता और सम्मान के बिना विवाह कभी खुशहाल नहीं हो सकता।


माता–पिता की महत्वपूर्ण भूमिका

बच्चे केवल शारीरिक देखभाल से नहीं, बल्कि भावनात्मक सुरक्षा से भी बड़े होते हैं। माता–पिता का यह दायित्व है कि वे बच्चों की भावनाओं को समझें—

* यदि बच्चा गुमसुम है,

* उसका व्यवहार असामान्य है,

* वह अकेला रहने लगा है,

* बात नहीं करना चाहता—

तो यह चेतावनी है कि बच्चों से बातचीत करें, उन्हें आश्वस्त करें: “हम तुम्हारे साथ हैं अच्छे समय में भी और बुरे समय में भी।” मन का घाव सबसे गहरा होता है, और इसका इलाज केवल प्यार, सहानुभूति और संवाद है।


समाज से अधिक अपने बच्चों की परवाह करें

समाज कभी साथ नहीं देता, लेकिन परिवार हमेशा देता है। इसलिए “लोग क्या कहेंगे” से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि आपके अपने बच्चे क्या महसूस कर रहे हैं। उन्हें यह महसूस कराएँ कि जीवन अनमोल है, और समस्याएँ स्थायी नहीं—परिवार का साथ स्थायी है।


समय रहते बात करें, समझें और संभालें

आत्महत्या कोई समाधान नहीं, केवल एक दर्दनाक विराम है। यदि कोई व्यक्ति परेशान है, तो उसकी बात सुनें। सुनना भी एक दवा है। उसे यह भरोसा दिलाएँ कि हर समस्या का हल है, हर रात के बाद सुबह है, और हर कठिनाई के बाद आसान रास्ता भी आता है। जीवन ईश्वर का अनमोल उपहार है। इसको समाप्त करना किसी भी समस्या का उत्तर नहीं है, क्योंकि कोई भी परेशानी इतनी बड़ी नहीं होती कि जीवन से अधिक मूल्यवान हो जाए। हमें मिलकर ऐसा समाज बनाना है, जहाँ किसी को भी यह महसूस न हो कि वह अकेला है। जहाँ प्रेम, सम्मान, संवाद और मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता मिले।

 

No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here