प्रथम सत्र में आईआईटी रूड़की के प्रतिष्ठित प्रोफेसर प्रो. शिव प्रसाद यादव ने विशेषज्ञ वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया। प्रो. यादव ने “आईएफ (Intuitionistic Fuzzy) मैथमेटिकल प्रोग्रामिंग प्रॉब्लम्स में द्वैतता सिद्धांत” विषय पर विस्तृत और प्रभावशाली व्याख्यान दिया। उन्होंने व्याख्यान की शुरुआत आईएफ वातावरण की मूलभूत परिभाषाओं एवं अवधारणाओं से की और आगे बढ़ते हुए यह समझाया कि निर्णय-निर्धारण की प्रक्रिया में अनिश्चितता, सदस्यता-असदस्यता तथा हेजिटेशन पैरामीटर किस प्रकार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।सत्र के दौरान उन्होंने निराशावादी (pessimistic), आशावादी (optimistic) तथा मिश्रित (mixed) दृष्टिकोणों के अंतर्गत आईएफ प्रोग्रामिंग में द्वैतता के ढांचे को विस्तार से समझाया। इन तीनों दृष्टिकोणों में निर्णय-निर्माताओं की जोखिम के प्रति प्रवृत्ति कैसे मॉडल होती है, इसका भी स्पष्ट विश्लेषण प्रस्तुत किया गया। उन्होंने एक विस्तृत संख्यात्मक उदाहरण के माध्यम से सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप में समझाया, जिससे प्रतिभागियों को द्वैत समस्या के निर्माण तथा उसके समाधान की गहन समझ प्राप्त हुई।अपने समापन वक्तव्य में प्रो. यादव ने बताया कि आईएफ द्वैतता सिद्धांत वास्तविक जीवन के अनिश्चित वातावरण में बेहतर और सटीक निर्णय-निर्धारण में अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। उन्होंने इस क्षेत्र में अनुसंधान के व्यापक अवसरों की ओर भी संकेत किया। प्रथम सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर अपु कुमार साहा रहे।
अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला के दूसरे सत्र के अंतर्गत आई.टी.एस., गाज़ियाबाद के प्रख्यात विशेषज्ञ प्रो. एस. के. पांडेय ने “AI-Driven Defence and the Strategic Response to India’s Evolving Threat Landscape” विषय पर अत्यंत महत्वपूर्ण और विचारोत्तेजक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उनका व्याख्यान आधुनिक साइबर सुरक्षा परिदृश्य, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की बढ़ती भूमिका तथा भारत की बदलती सुरक्षा चुनौतियों पर केंद्रित रहा। प्रो. पांडेय ने बताया कि वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ती डिजिटाइजेशन प्रक्रियाओं ने साइबर सुरक्षा को केवल तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक राष्ट्रीय आवश्यकता बना दिया है। विश्व में साइबर सुरक्षा का खर्च 2025 तक $212 बिलियन पार करने का अनुमान है, जबकि साइबर अपराध से होने वाला नुकसान $10.5 ट्रिलियन प्रति वर्ष तक पहुँचने की संभावना है, जो इसे दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी “अर्थव्यवस्था” बनाता है। उन्होंने उल्लेख किया कि AI और ऑटोमेशन ने डेटा ब्रीच की लागत को कम किया है, परंतु हमलों की जटिलता और गति लगातार बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि 2024 में 75 ज़ीरो-डे हमलों की रिपोर्ट की गई और अब हमले शुरू होने का समय केवल 5 दिनों तक सिमट गया है। VPN और फायरवॉल जैसे सुरक्षा उपकरण स्वयं हमलावरों के लक्ष्य बनते जा रहे हैं, जिससे सप्लाई-चेन जोखिम और गंभीर बन रहे हैं। साथ ही, 68% साइबर घटनाओं का कारण मानव त्रुटि है, जो उन्नत AI-आधारित व्यवहार विश्लेषण (behaviour-based detection systems) की आवश्यकता को रेखांकित करता है। भारत की साइबर सुरक्षा स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, प्रो. पांडेय ने बताया कि भारत ITU Global Cybersecurity Index में Tier-1 राष्ट्र है और देश की साइबर सुरक्षा सेवाएँ 21% CAGR की दर से बढ़ रही हैं। फिर भी चुनौतियाँ विशाल हैं—2024 में ₹11,333 करोड़ की साइबर धोखाधड़ी, 369 मिलियन मैलवेयर डिटेक्शन, और 409% की क्रिप्टोजैकिंग वृद्धि दर्ज की गई। BFSI, स्वास्थ्य सेवा और हॉस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्र सबसे अधिक जोखिम में हैं। सरकारी प्रयासों—जैसे IndiaAI Application Development Initiative, CyberGuard AI Hackathon, I4C, और Cyber Swachhta Kendra—को एक सकारात्मक दिशा बताते हुए, उन्होंने कहा कि देश AI-संचालित रक्षा क्षमता की ओर बढ़ रहा है। परंतु उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि DPDP Act (2023) में अभी एल्गोरिथमिक पारदर्शिता और AI गवर्नेंस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों की कमी है। व्याख्यान में AI-संचालित सुरक्षा तकनीकों—SOAR, UEBA, CNN-GAN आधारित मॉडल, और AI-आधारित पहचान प्रणालियों—के प्रभावी उदाहरण प्रस्तुत किए गए, जिनसे कई वैश्विक संस्थानों ने 50–60% तक गलत अलर्ट में कमी और तेज प्रतिक्रिया समय हासिल किया है। अंत में, प्रो. पांडेय ने कहा कि आने वाला समय एथिकल AI, विश्वसनीयता ढांचा (Trusted AI Framework), तथा Quantum-Resilient Cybersecurity की मांग करता है। क्वांटम कंप्यूटिंग के 2035 तक पारंपरिक एन्क्रिप्शन को तोड़ देने की संभावना को देखते हुए, Post-Quantum Cryptography (PQC) को अपनाना अत्यंत आवश्यक है। प्रो. पांडेय का यह व्याख्यान साइबर सुरक्षा, रक्षा रणनीति, AI गवर्नेंस और भविष्य की तकनीकी चुनौतियों को समझने में अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ। कार्यशाला में उपस्थित शोधार्थियों, शिक्षकों और प्रतिभागियों ने इसे अत्यंत उपयोगी और प्रेरक माना। दूसरे सत्र की अध्यक्ष प्रोफेसर मुकेश कुमार शर्मा
रहे।
तृतीय सत्र में दून यूनिवर्सिटी, देहरादून के डॉ. कोमल ने “Development of an Interactive Multi-Criteria Group Decision Making with Application” विषय पर अत्यंत प्रभावी व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि वास्तविक जीवन की MCGDM समस्याओं में सर्वश्रेष्ठ विकल्प चुनने के लिए निर्णयकर्ताओं को अनेक चुनौतियों—जैसे परस्पर-विरोधी मानदंड, विशेषज्ञों एवं मानदंड भारों की अनुपलब्धता, डेटा में अनिश्चितता, तथा सूचना के सही एकीकरण—का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक इंटरएक्टिव MCGDM दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जिसमें डेटा की अनिश्चितता को Intuitionistic Fuzzy Sets द्वारा मापा गया, सभी निर्णयकर्ताओं को समान भार देकर निष्पक्षता सुनिश्चित की गई, Best Worst Method (BWM) के माध्यम से अज्ञात मानदंड भारों का निर्धारण किया गया, तथा सूचना संयोजन के लिए Archimedean t-norm/t-conorm आधारित Bonferroni mean का उपयोग किया गया। सर्वोत्तम विकल्प चयन के लिए Intuitionistic Fuzzy TOPSIS अपनाया गया। इस पद्धति को घाना में मोबाइल बैंकिंग प्लेटफॉर्मों के मूल्यांकन पर लागू किया गया और संवेदनशीलता व तुलनात्मक विश्लेषण से यह सिद्ध हुआ कि यह इंटरएक्टिव MCGDM तकनीक लचीली, व्यावहारिक और किसी भी जटिल वास्तविक MCDM समस्या के समाधान हेतु अत्यंत प्रभावी है। डॉ. प्रोफेसर जयमाला तृतीय सत्र की अध्यक्ष रही।
कार्यशाला के चतुर्थ महत्वपूर्ण सत्र में आरईसी, कन्नौज के डॉ. अनुराग शुक्ला ने “A Journey from Integer to Fractional Order Systems” विषय पर अत्यंत ज्ञानवर्धक व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रतिभागियों को पारंपरिक integer-order systems से fractional-order systems तक की एक रोचक वैज्ञानिक यात्रा पर ले जाते हुए समझाया कि जहाँ पूर्णांक क्रम के अवकलन और समाकलन सीमित व्यवहार को दर्शाते हैं, वहीं fractional-order दृष्टिकोण किसी भी वास्तविक क्रम के संचालन को संभव बनाता है, जिससे प्रणालियों के memory एवं hereditary behavior को बेहतर तरीके से मॉडल किया जा सकता है। डॉ. शुक्ला ने विस्तार से बताया कि controllability, optimal control जैसे महत्त्वपूर्ण सिद्धांत fractional क्षेत्र में किस प्रकार विकसित होते हैं। उन्होंने Caputo derivatives, fractional Gramians, और Mittag-Leffler stability जैसे उन्नत गणितीय उपकरणों पर प्रकाश डालते हुए यह समझाया कि इन अवधारणाओं के माध्यम से जटिल गतिशील प्रणालियों का विश्लेषण अधिक वास्तविक और उपयोगी हो जाता है। सत्र के अंत में उन्होंने यह स्पष्ट किया कि fractional-order systems न केवल पारंपरिक नियंत्रण सिद्धांत को समृद्ध बनाते हैं, बल्कि आधुनिक वैज्ञानिक एवं इंजीनियरिंग चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक लचीले और व्यवहारिक मॉडल प्रदान करते हैं। उनका वक्तव्य सभी प्रतिभागियों के लिए प्रेरणादायक और अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुआ। चतुर्थ सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेश डंगवाल, हेमवती नंदन बहुगुणा विश्व विद्यालय, श्रीनगर उत्तराखंड से रहे।
पंचम तकनीकी सत्र में थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (TIET), पंजाब के डॉ. हरीश गर्ग ने “Aspects of Decision-Making Process” विषय पर अत्यंत विचारोत्तेजक और ज्ञानवर्धक व्याख्यान प्रस्तुत किया।अपने व्याख्यान में डॉ. गर्ग ने व्यक्तिगत, संगठनात्मक तथा नीतिगत—तीनों स्तरों पर निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण पहलुओं की व्याख्या की। उन्होंने बताया कि निर्णय लेना केवल एक रैशनल प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसमें मानव व्यवहार, अनिश्चितता और विभिन्न सामाजिक-प्रासंगिक कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि आधुनिक समय में डेटा, तकनीक और विश्लेषणात्मक उपकरण प्रभावी एवं बेहतर निर्णय लेने में अहम योगदान देते हैं। सत्र में निर्णय-निर्धारण संबंधी विभिन्न विधियों, ढाँचों और तकनीकों की चर्चा की गई, साथ ही अनिश्चितता और उसके प्रभाव के मूलभूत सिद्धांतों को विशेष रूप से समझाया गया। डॉ. गर्ग का यह व्याख्यान सिद्धांत और व्यवहार के बीच एक मजबूत सेतु का कार्य करता है, जिसने प्रतिभागियों को यह समझने में सहायता दी कि विभिन्न संदर्भों में निर्णय-निर्धारण को अधिक प्रभावी, संरचित और परिणामकारी कैसे बनाया जा सकता है। सत्र सभी उपस्थित प्रतिभागियों के लिए अत्यंत उपयोगी और प्रेरणादायक रहा। पंचम सत्र के अध्यक्ष डॉ. संदीप कुमार रहे। कार्यशाला में कुल 70 प्रतिभागियों ने भाग लिया। साथ ही शोधार्थी राजीव शर्मा, तरुण कुमार, वैशाली, नीतू, आशीष, आकाश, ललित, बलराम और वैभव कार्यशाला में उपस्थित रहे और महत्वपूर्ण योगदान दिया।
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