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Friday, December 5, 2025

छोटे कस्बों के स्कूल बन रहे मिसाल, विक्टोरियस इंटरनेशनल ने लिखी इबारत

 


-2016 में किया था शुरू, आज 650 से अधिक बच्चे कर रहे शिक्षा ग्रहण, कोविड के बाद भी नहीं रूका सफर


लियाकत मंसूरी

नित्य संदेश, अतरौली। यहां स्थित विक्टोरियस इंटरनेशनल स्कूल आज छोटे कस्बों के स्कूलों के लिए एक मिसाल बन रहा है। 2016 में नर्सरी से 12वीं तक के सीबीएसई स्कूल के रूप में शुरू हुआ यह संस्थान आज 650 से अधिक बच्चों को पढ़ा रहा है, लेकिन कोविड के दौरान हालात इतने खराब हो गए थे कि बच्चों की संख्या आधी रह गई थी। 2020झ्र21 में स्कूल ने लीड के तकनीकी और शैक्षणिक सिस्टम को अपनाया। शुरुआत में यह महामारी से निपटने का एक समाधान था, लेकिन धीरे-धीरे इसने स्कूल की पूरी शिक्षा पद्धति बदल दी। बच्चों की अंग्रेज़ी बोलने की क्षमता, गणित की समझ, आत्मविश्वास और अवधारणाओं की पकड़ मज़बूत हुई, स्कूल एनईपी 2020 की सोच के अनुरूप तैयार हो रहा था।


लीड के विज़ुअल टूल्स से सीखने में बड़ा सुधार

कोविड के समय जब स्कूल अचानक बंद हो गए, तब पढ़ाई जारी रखना सबसे बड़ी चुनौती बन गई। विक्टोरियस इंटरनेशनल स्कूल भी इससे अछूता नहीं था। प्रधानाचार्य मोहिनी कहती हैं, 2020 में हालात बहुत कठिन थे। लेकिन लीड  की रिकॉर्डेड क्लासेस और डिजिटल सामग्री हमारे लिए जीवनरेखा बन गई। हमारे बच्चे जुड़े रहे और कोई बड़ा लर्निंग लॉस नहीं हुआ।ह्व शिक्षकों को प्री-रिकॉर्डेड वीडियो लेक्चर, गूगल-कम्पेटिबल विजुअल्स और तैयार लेसन प्लान मिले। बच्चे घर पर भी किताब जैसा ही अनुभव लेकर पढ़ते रहे। पहले विज़ुअल्स के बिना बच्चों को समझाना कठिन था, लेकिन अब वीडियो देखते ही वे तुरंत समझने लगते हैं। उनकी कल्पना बढ़ती है, बातें याद रहती हैं और नंबर भी सुधरे हैं। सीखने की रफ़्तार बदल गई है। प्रधानाचार्य मोहिनी कहती हैं, रीडिंग से लेकर बोलने तक, बच्चों में हर चीज़ में सुधार आया है। शुरू में कुछ अभिभावक पूछते थे कि बदलाव क्यों किया जा रहा है? लेकिन नतीजे देखकर वही लोग सबसे ज़्यादा सपोर्ट करने लगे। सिर्फ़ क्लास 6 में ही बच्चों के कुल नंबर 2022 में लगभग 42% से बढ़कर 2025 में करीब 77% हो गए, ये बदलाव खुद अपनी कहानी कहते हैं।


छोटे कस्बों के स्कूल भी लगा सकते है बड़ी छलांग

प्रधानाचार्य मोहिनी कहती हैं, दिन-ब-दिन अभिभावकों का भरोसा बढ़ा है। हर दिन माता-पिता का भरोसा मज़बूत हो रहा है। बच्चों में आया असली बदलाव ही हमारी सबसे बड़ी जीत और सबसे बड़ा गर्व है। विक्टोरियस इंटरनेशनल स्कूल की यह यात्रा दिखाती है कि सही तकनीक और सही दिशा के साथ छोटे कस्बों के स्कूल भी बड़ी छलांग लगा सकते हैं। कोविड के बाद नए सीखने के तरीकों और शिक्षक प्रशिक्षण को आसानी से अपनाकर इस स्कूल ने शिक्षा को नए सिरे से परिभाषित किया है, और अब यह भारत के छोटे शहरों में शिक्षा परिवर्तन का एक मजबूत मॉडल बनकर उभर रहा है।


स्कूल में बच्चों के आत्मविश्वास में लगातार बढ़ोतरी हुई

सुमीत मेहता (सीईओ और सह-संस्थापक, लीड ग्रुप) कहते हैं, विक्टोरियस इंटरनेशनल स्कूल ने दिखाया है कि सही शैक्षिक तरीकों औरमजबूत सिस्टम का एक बच्चे की सीखने की यात्रा पर कितना गहरा प्रभाव पड़ सकता है। लीड ग्रुप से जुड़ने के बाद से स्कूल में बच्चों के आत्मविश्वास में लगातार बढ़ोतरी हुई है और शिक्षक व अभिभावकों, दोनों का भरोसा मजबूत हुआ है। यह उसी बात का प्रमाण है जिसके लिए लीड काम करता है, हर बच्चे को उत्कृष्ट शिक्षा उपलब्ध कराना। विक्टोरियस में आया बदलाव केवल अकादमिक नहीं है, यह बच्चों को नए आत्मविश्वास और उद्देश्य का एहसास दिलाने वाला परिवर्तन है।


ये कहना है शिक्षकों का

विज्ञान शिक्षिका प्रियंका सिंह बताती हैं, आत्मविश्वास बढ़ा, भाषा की दूरी घटी, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में हिंदी, अंग्रेज़ी का अंतर बच्चों के आगे बढ़ने में बाधा बनता है। लीड की द्विभाषी सामग्री ने यह अंतर कम किया। टीवी स्क्रीन पर दिखने वाले वीडियो, अंग्रेज़ी बोलने का रोज़-रोज़ अभ्यास और गणित के टेस्ट ने बच्चों की पकड़ मज़बूत की।


अंग्रेज़ी शिक्षक और अकादमिक कोऑर्डिनेटर नंद किशोर नागाइच बताते हैं, साप्ताहिक और मासिक ट्रेनिंग ने शिक्षकों का आत्मविश्वास बढ़ाया है। डीपीपीएस, एमसीक्यूएस और असाइनमेंट बच्चों में स्वस्थ प्रतियोगिता लाते हैं। हमें लाभ ही दिखा है।ह्व शिक्षक सशक्त, छात्र प्रगति पर तकनीक ने शिक्षकों को बदला नहीं, बल्कि और सक्षम बनाया। हर शिक्षक को टैब दिया गया, जिसमें लेसन प्लान, गतिविधियाँ और समझाने के तरीके पहले से मौजूद थे। किताबों पर आधारित कठिन व्याख्याएँ अब आसान चित्रों, कहानियों और वास्तविक उदाहरणों के साथ समझाई जाने लगीं।


एक शिक्षिका बताती हैं, पहले बच्चे सुन लेते थे, पर समझ कम आती थी। अब वे तुरंत विषय को अपने आसपास की दुनिया से जोड़ते हैं और नए सवाल पूछते हैं।


ये कहना है छात्रों को

शिवानी पाठक, कक्षा 8: करके सीखना कॉपी से लिखने से कहीं बेहतर है। हम समझते हैं कि क्या पढ़ रहे है।

मन्नान खान, कक्षा 10: कांसेप्ट चेक और एक्सटेंडेड लर्निंग से बड़ी परीक्षाओं की तैयारी होती है, जो भी पढ़ते हैं, वह असली जीवन में दिखता है।


एनईपी के अनुसार, भविष्य के लिए तैयार पाँच साल बाद आज स्कूल में शिक्षक, छात्र और उनके माता-पिता, तीनों ही संतुष्ट हैं। सबसे बड़ा बदलाव बच्चों के व्यवहार में दिखाई देता है, वे पहले से अधिक आत्मविश्वासी, बोलने में सहज और सीखने को लेकर उत्सुक हैं।

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