नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधकराचार्य त्रिपाठी के
आवास पर बुधवार से सामवेद की कथा प्रारंभ हुई। कथाव्यास प्रो. पूनम लखनपाल ने बताया
कि वेद पद विद् धातु से बना है। प्रकृति में मनुष्येतर समस्त जीवों के वेद सनातन, शाश्वत्
व अविरल हैं।
बताया कि ऋषयों मन्त्रदृष्टारः। गान प्रधान गेयात्मक मन्त्रसंग्रह
सामवेद कहलाता है। वेदों में आस्थावान् ही आस्तिक हैं। शिक्षा (उच्चारण विधान) वेदों
का घ्राण है। साम (सँभालना, साम-नीति, मृत्यु के समय और शान्ति प्रदान करने वाली विद्या,
ऋचाओं की गान विद्या) के लिए प्रयुक्त होता है। वेदेषु सामोsस्मि - श्रीकृष्ण। सामवेद
के आग्नेय पर्व (आग्नेय सूक्त) के 114 मन्त्र के सम्बन्ध में चर्चा प्रारम्भ हुई। अग्नि
व यज्ञ का सम्बन्ध अटूट है। अग्नि शरीर में तापमान, जठराग्नि, के रूप में वास करती
है। "अग्न आयाहि" कहकर हम अग्नि का जीवन में आह्वान करते हैं। अग्नि देवाताओं
का मुख कहा जाता है। अग्नि हव्य को देवताओं तक पहुँचाते हैं। गुरुवार को कथा में यह
प्रसङ्ग आगे गति करेगा।

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