नित्य संदेश। भारत आज तीव्र गति से शहरीकरण की ओर बढ़ रहा है। गांव और कस्बों से लोग रोजगार, शिक्षा और बेहतर सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। लेकिन इस अनियंत्रित पलायन का परिणाम आज हमारे सामने है — बढ़ती जनसंख्या का दबाव, प्रदूषण, ट्रैफिक जाम, अव्यवस्थित कॉलोनियां और भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था।
अब **समय की पुकार** है कि हम विकास की परिभाषा को बदलें। विकास केवल महानगरों की ऊँची इमारतों और चौड़ी सड़कों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे **तहसील और ब्लॉक स्तर तक** ले जाना होगा।
🔹 तहसील एवं ब्लॉक स्तर पर सरकारी कार्यालयों की आवश्यकता
यदि प्रत्येक तहसील और ब्लॉक में सभी प्रमुख सरकारी विभागों के कार्यालय स्थापित हों — जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, राजस्व, परिवहन, रोजगार और उद्योग — तो नागरिकों को छोटे-छोटे कार्यों के लिए शहरों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। इससे न केवल समय और धन की बचत होगी, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
🔹 उच्च शिक्षण संस्थानों का ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार
शिक्षा पलायन का सबसे बड़ा कारण है। अगर ब्लॉक स्तर पर **बड़े कॉलेज, तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षण संस्थान** खोले जाएं तो गांवों और कस्बों के युवाओं को शहरों में भटकना नहीं पड़ेगा। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा और शिक्षित युवा अपने ही क्षेत्र में नई संभावनाएं तलाशेंगे।
🔹 शहरी अव्यवस्था की सच्चाई
आज शहरों की हालत यह है कि वे **नालों और सीवर के ऊपर तक फैल चुके हैं**। आवासीय कॉलोनियां धीरे-धीरे **कमर्शियल मार्केट** में तब्दील हो चुकी हैं। विकास प्राधिकरण के कुछ भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत लेकर इस अव्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं और फिर वही जनता **ध्वस्तीकरण की कार्यवाही** का शिकार बनती है। यह दोहरी नीति समाज के प्रति अन्याय है।
🔹 समाधान का मार्ग
* विकास प्राधिकरणों का पुनर्गठन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही तय की जाए।
* शहरों का बोझ कम करने के लिए **गांवों को विकास की मुख्यधारा** में जोड़ा जाए।
* हर ब्लॉक स्तर पर *मिनी स्मार्ट टाउनशिप मॉडल* लागू किया जाए जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासन और बाजार की सुविधाएं उपलब्ध हों।
* ग्रामीण युवाओं को स्टार्टअप, कृषि-आधारित उद्योग और साइक्लिंग जैसी फिटनेस व पर्यावरण पहल से जोड़ा जाए।
भारत की आत्मा गांवों में बसती है। अगर गांव समृद्ध होंगे, तो शहर स्वतः संतुलित और सुंदर बनेंगे।
अब समय आ गया है कि **विकास को विकेंद्रीकृत** किया जाए — ताकि कोई भी व्यक्ति सुविधा और सम्मान की तलाश में अपना गांव छोड़ने को मजबूर न हो।
डॉ. अनिल नौसरान*
*फाउंडर, साइक्लोमैड फिट इंडिया*
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