-‘कानून से ऊपर’ जाकर अवैध निर्माण को मंडलायुक्त ने दिया संरक्षण
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शास्त्री नगर की अवैध वाणिज्यिक इमारत पर सर्वोच्च न्यायालय के ध्वस्तीकरण आदेश की खुली अवहेलना मंडलायुक्त ने की है, उन्होंने ‘कानून से ऊपर’ जाकर अवैध निर्माण को संरक्षण दिया। ये कहना है एडवोकेट रामकुमार शर्मा का।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश आवास एवं विकास परिषद द्वारा “शास्त्री नगर योजना संख्या-7” के अंतर्गत विकसित की गई आवासीय भूमि पर वर्षों से चल रहे अवैध वाणिज्यिक निर्माण के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने 17 दिसम्बर 2024 को ऐतिहासिक निर्णय सुनाया था। प्लॉट संख्या 661/6, सेक्टर-6, शास्त्री नगर योजना संख्या-7 पर निर्मित सभी वाणिज्यिक निर्माण पूर्णत: अवैध हैं, इनका ध्वस्तीकरण अनिवार्य रूप से किया जाए, और यह कार्य तीन माह की अवधि में पूरा कर खाली कब्जा परिषद को सौंपा जाए। गत 17 दिसंबर 2024 को न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने स्पष्ट निर्देश दिया कि “अनधिकृत व्यावसायिक निर्माण कानून के विपरीत है। ऐसा कोई निर्माण वैध नहीं ठहराया जा सकता। किसी भी अधिकारी को यह अधिकार नहीं कि वह इसे नियमित या संरक्षित करे।” इसके पश्चात 28 अप्रेल 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने Misc. Application No. 493/2025 में यह कहते हुए विस्तार से आदेश दिया कि “निर्देशों का पालन अब तत्काल किया जाए, अन्यथा संबंधित अधिकारी एवं व्यक्ति अवमानना (Contempt) के दोषी होंगे।”
मंडलायुक्त मेरठ का विवादित आदेश
एडवोकेट रामकुमार शर्मा ने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेशों के बावजूद मंडलायुक्त हरीकेश भास्कर यशोदा द्वारा 27 अक्टूबर 2025 को जारी आदेश में कहा गया कि “सेंट्रल मार्केट की दुकानों को वर्तमान में नहीं तोड़ा जाएगा। मास्टर प्लान संशोधन कर उक्त क्षेत्र को ‘बाज़ार स्ट्रीट’ के रूप में दर्ज किया जाएगा। भवन स्वामियों को पुनर्निर्माण के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाएगी। इस आदेश से यह स्पष्ट है कि मंडलायुक्त ने न केवल सर्वोच्च न्यायालय के ध्वस्तीकरण आदेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया, बल्कि अवैध निर्माण को वैधता प्रदान करने का प्रयास किया।
कानूनी स्थिति एवं उल्लंघन का विश्लेषण
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत “Law of the Land” है, अर्थात यह देशभर की सभी अदालतों, प्राधिकरणों और अधिकारियों पर बाध्यकारी (binding) है। इस संदर्भ में मंडलायुक्त का आदेश न केवल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की प्रत्यक्ष अवहेलना है, बल्कि Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 2(b) के अंतर्गत “जानबूझकर अवमानना” (Wilful Disobedience) की श्रेणी में आता है। जिससे सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना से न्याय पालिका की सर्वोच्चता पर प्रश्नचिह्न लगता है। इस निर्णय से नगर विकास व आवास कानून की विश्वसनीयता कमजोर हुई है। मंडलायुक्त का यह कदम अवैध निर्माणकर्ताओं को संरक्षण देने का प्रतीक बन गया है।यदि ऐसे आदेशों को नजर अंदाज किया गया, तो शहर नियोजन और कानून व्यवस्था दोनों खतरे में पड़ जाएँगे।
जनता और मीडिया से अपील
एडवोकेट रामकुमार शर्मा ने अपील करते हुए कहा कि देश की जनता और मीडिया से यह अपेक्षा की जाती है कि इस गंभीर अवमानना प्रकरण को प्रमुखता से उठाएँ, न्याय पालिका की प्रतिष्ठा और संविधान की सर्वोच्चता की रक्षा के लिए जनमत तैयार करें, यह सुनिश्चित करें कि कोई भी अधिकारी या राजनीतिक संरक्षण प्राप्त व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से ऊपर न हो। यह प्रकरण केवल एक इमारत या कुछ दुकानों का नहीं, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 141 की गरिमा और न्याय पालिका की सर्वोच्चता का प्रश्न है। जब सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की खुलेआम अवहेलना किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा की जाती है, तो यह न केवल कानूनी अपराध है, बल्कि लोकतंत्र के आधार स्तंभ न्याय पालिका की अवमानना भी है।
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