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Thursday, August 21, 2025

परवीन शाकिर की कविताएँ परवीन की पहचान हैं: डॉ. तकी आबिदी


सीसीएस विश्वविद्यालय में उर्दू विभाग ने "परवीन शाकिर की कविताएँ" विषय पर एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। परवीन शाकिर की कविताएँ परवीन की पहचान हैं। परवीन की पहली किताब "ख़ुशबू" में स्त्री स्वर और चीज़ों को परखने का एक भरपूर नज़रिया है। उन्होंने बहुत कम उम्र में ही अपनी कविताओं में बेबाकी और यथार्थ को प्रस्तुत किया है। उनके पास पाबंद नज़्में भी हैं, आज़ाद नज़्में और गीत भी हैं। परवीन शाकिर पर बहुत कम काम हुआ है। यह शब्द अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त आलोचक डॉ. तकी आबिदी के थे, जो आयुसा और उर्दू विभाग द्वारा आयोजित "परवीन शाकिर की नाज़्मिया शायरी" विषय पर अपना वक्तव्य दे रहे थे। 

उन्होंने आगे कहा कि परवीन शाकिर के संग्रह "खुशबू" में मासूम जज्बात मिलते हैं। जिस तरह से वह शब्दों को लाक्षणिक रूप देती हैं और उन्हें चलती-फिरती आकृतियों के रूप में प्रस्तुत करती हैं, वह परवीन शाकिर की प्रतिभा है। परवीन शाकिर पर वैज्ञानिक तरीके से काम करने की जरूरत है। सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से कार्यक्रम की शुरुआत की। कार्यक्रम का संरक्षण उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी एवं डॉ. तकी आबिदी [कनाडा] ने और अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम ने की। मुख्य अतिथि कश्मीर विश्वविद्यालय की प्रोफेसर आरिफा बुशरा थीं और विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ज़ैन रमेश(झारखंड) और डॉ. रुबीना शबनम (उर्दू विभागाधयक्ष, नवाब शेर मुहम्मद ख़ान इंस्टीट्यूट, मालेर कोटला) उपस्थित रहे। इलमा नसीब (शोधार्थी उर्दू विभाग) अतिथि रही। लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रोफ़ेसर रेशमा परवीन कार्यक्रम में उपस्थित थीं। स्वागत फरहत अख्तर, संचालन उज़मा सहर और धन्यवाद ज्ञापन ईसा राणा ने किया।

इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुए प्रोफ़ेसर असलम जमशेदपुरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि परवीन शाकिर ने अपनी कविताओं और ग़ज़लों में महिलाओं के जज़्बातों को इस तरह पेश किया है जैसा सिर्फ़ वही कर सकती थीं। एक महिला के ऐसे जज़्बात जो सिर्फ़ एक महिला ही व्यक्त कर सकती है और इसकी शुरुआत परवीन शाकिर ने की थी। परवीन शाकिर को भारत-पाकिस्तान के स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। परवीन शाकिर महिलाओं के मुद्दों को ख़ूबसूरती और अनोखे तरीक़े से पेश करने का हुनर जानती थीं।

डॉ. रुबीना शबनम ने कहा कि परवीन शाकिर को लोकप्रिय साहित्य में रखकर उनका कद छोटा किया जा रहा है। शायद ऐसे लोग उनके आंदोलनों और नारीवाद से वाकिफ नहीं हैं। महिलाओं के साथ-साथ वह पुरुषों को भी कुछ नामों से प्रस्तुत करती हैं, जैसे हवा, चाँद और कुछ अन्य नामों से।

डॉ. ज़ैन रमेश ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज का विषय बहुत महत्वपूर्ण है और इस पर एक सार्थक चर्चा हो रही है। उनके कलात्मक प्रयासों पर दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कविताएँ अपने आप में अनूठी हैं। उनकी कविताएँ बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनमें जीवन का दुःख और जीवन के मुद्दे मिलते हैं। वह अपनी सभी विशेषताओं के साथ अपना परिचय देती हैं। उनकी पूरी कविता में पुरुषों के लिए कठोर वाक्यों से परहेज किया गया है।

मुख्य अतिथि प्रोफेसर आरिफा बुशरा ने कहा कि 1960-70 के काव्य परिदृश्य में परवीन शाकिर स्त्री भाषा और लहजे की आवाज़ बनकर उभरीं। उन्हें महिलाओं से जोड़कर अपने मुद्दों को प्रस्तुत करने का सौभाग्य प्राप्त है। उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को नई शब्दावली, नई भाषा और लहजा दिया। परवीन शाकिर अंग्रेजी कविता से भी प्रभावित थीं। उनकी यहाँ भी अंग्रेजी कविताएँ हैं। अंग्रेजी, फ़ारसी और उर्दू के शब्द उनकी कविताओं की गरिमा को दोगुना कर देते हैं। उनकी कविताएँ आधुनिक होने के साथ-साथ अनूठी भी हैं।

प्रोफ़ेसर रेशमा परवीन ने कहा कि आज का विषय बहुत महत्वपूर्ण था और यह मेरा पसंदीदा विषय भी है। प्रोफ़ेसर अबुल कलाम कासमी मुझे अपनी कक्षा में परवीन शाकिर की कविताएँ पढ़ाते थे, जो मुझे आज भी याद हैं। परवीन शाकिर मेरे दिल के बहुत करीब हैं। वह हमारे नफ़्सियात और लफ्ज़ियात की चित्रकार हैं। एक कलाकार वही होता है जो पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रोफ़ेसर सगीर अफ़्राहीम ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि परवीन शाकिर की शायरी के हर पहलू पर शोध की ज़रूरत है। आज परवीन शाकिर पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण चर्चा हुई और उनकी कविताओं पर भी अच्छी चर्चा हुई। आज अगर हम 2025 में परवीन की कविताओं की बात कर रहे हैं, तो यह उनकी विशिष्टता के कारण है। परवीन शाकिर ने अपनी शायरी में न केवल महिलाओं, बल्कि पुरुषों का भी प्रतिनिधित्व किया है। परवीन शाकिर पर एक बड़े कार्यक्रम के साथ-साथ उन पर शोध की भी बहुत ज़रूरत है।

कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद व अन्य छात्र जुड़े रहे।

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