नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर
भागवत की तपप्रधान तीसरे दिन की कथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया, जीवन में सभी को अपने अच्छे या बुरे कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है।
कहा कि बुरे कर्मों का फल भोगने से सभी बचना चाहते हैं, परन्तु नरक भोगना भी एक प्रकार की तपस्या है। अपने किए का सारा फल इसी जीवन में भोग लेना चाहिए, जिससे आगे
का जीवन सफल हो जाता है। अजामिल जो कि ब्राह्मण व तपस्वी थे,
उनकी कथा का वर्णन हुआ। प्राचीनबर्हि की कथा, कश्यप और दिति की
तपस्या का वर्णन, हिरण्यकशिपु की तपस्या
का वर्णन, तपस्या
केवल देवी देवता ही नहीं, अपितु राक्षस भी करते हैं। भेद
केवल इतना है, तप अपने लिए है या जगत के कल्याण के लिए है। इस
दुनिया में सब चीजों का सार विष्णु का नाम है। नारदजी द्वारा प्रह्लाद को गर्भ में
ही उपदेश देना।
भक्त प्रह्लाद को हिरण्यकशिपु द्वारा मारने की कोशिश। प्रह्लाद की तपस्या के
कारण उसका बार बार बच जाना। हिरण्यकशिपु का नृसिंह अवतार द्वारा वध करना व
गजेन्द्र मोक्ष आदि की कथा का वर्णन हुआ। हर कार्य के उद्देश्यरुप अगर नारायण हैं
तो सभी प्रकार से नारायण रक्षा करते हैं। शनिवार को बलि, वामन अवतार, बलि की तपस्या का
स्वरुप, वैवस्वत मनवन्तर व
कृष्ण जन्म तक की कथा होगी।
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